उमंग और उत्साह से भरा होता है कॉलेज का पहला दिन। सभी नौजवान एक नयी दुनिया में कदम रखते हैं। जहां उन्हें ज़िन्दगी के बहुत से कड़वे और मीठे अनुभवों से गुज़रना पड़ता है। और कॉलेज खत्म होने के बाद सब विद्यार्थी आग में तपे सोने की तरह निखर कर व्यस्क दुनिया में कदम रखते हैं। 
ऐसी ही एक पहल करने जा रही थी शिवानी। आज उसके कॉलेज का पहला दिन था। दिल में खुशी के साथ साथ एक अजीब सा डर भी था। वो आईने के सामने खड़ी हो खुद से ही बड़बड़ा रही थी। 
“कैसे संभालूंगी मैं सब? क्या कॉलेज में भी बच्चे मुझे उसी तरह अपना पाएंगे जिस तरह स्कूल में मेरी सहेलियों ने मुझे अपनाया था? जब वो मुझसे मिलेंगे तो क्या सोचेंगे मेरे बारे में? क्या वो भी मुझे ही गलत समझेंगे?” ये सब सोचते-सोचते शिवानी की आंखों दर्द उमड़ पड़ा। 
तभी उसकी मां अंदर आईं और उसे इस अवस्था में देख उसको ढांढस बंधाते हुए बोलीं,”तू तो मेरी बहादुर बच्ची है। हर चुनौती का डट कर सामना करती है। तो फिर ये चुनौती तो बहुत ही छोटी सी है। तू यूं पार कर लेगी। चल अब तैयार हो जा जल्दी से।” उन्होंने उसे स्कार्फ पकड़ाते हुए कहा। 
शिवानी अपनी मां के गले लगी और कॉलेज के लिए निकल गई। वहां की चहल-पहल देख वह बहुत घबरा गई। पर अपने डर पर काबू पा उसने अपनी स्कूटी स्टैंड पर लगाई और कॉलेज के गेट की तरफ बढ़ गई। 
जैसे ही वह गेट तक पहुंची उसे लाइन में लगने को कहा गया। सभी फाइनल ईयर स्टूडेंट्स फर्स्ट ईयर स्टूडेंट्स की रैगिंग कर रहे थे। 
उन सबको कॉलेज के बगीचे में ले जाया गया। वहां एक टेबल पर एक खाली बोतल पड़ी थी। सबको उसके सामने खड़ा किया गया और खेल शुरू हुआ ट्रूथ और डेयर का। 
सब बहुत मज़े कर रहे थे। सीनियर्स किसी को डेयर आने पर डांस करा रहे थे तो किसी को ट्रूथ आने पर अपने पहले प्यार, पहली गलती बताने को कह रहे थे। 
शिवानी की बारी आई। बोतल घुमाई गई। और बोतल ट्रुथ पर आकर रुकी। एक सीनियर लड़की ने उससे उसकी ज़िन्दगी की सबकी डरावनी सच्चाई बताने को कहा। 
शिवानी थोड़ा सहम गई। इसलिए नहीं कि वह डर गई थी बल्कि इसलिए कि उसकी डरावनी सच्चाई सचमुच बहुत डरावनी थी। और उसे सुनकर सब शायद डर जाएं। पर सबके ज़ोर देने पर वो बोली, “दो साल मैं अपनी सहेली के साथ घर से मार्केट के लिए निकली थी। तभी वहां हमारे मौहल्ले का छिछोरा लड़का विक्की आ गया। और मुझसे ज़बरदस्ती वेलेंटाइन पार्टी पर आने के लिए फोर्स करने लगा। वो पहले भी कई बार मुझे डेट पर चलने के लिए प्रप्रोज़ कर चुका था और मैं हर बार उसके प्रपोज़ल को ठुकरा देती थी। पर उसने मेरा पीछा करना नहीं छोड़ा। और उस दिन जब मैंने उसके साथ पार्टी में जाने से साफ इंकार कर दिया तो उसने अपनी जेब से एक बोतल निकाली और झट उसमें भरा पानी मुझ पर उछाल दिया। और …” ये कह कर शिवानी चुप हो गई। 
सब शिवानी को देख रहे थे। एक लड़की ने धीरे से पूछा,”फिर… क्या हुआ?” 
शिवानी की आंखों में नमी थी। उसने धीरे से अपने गले पर पहना स्कार्फ उतारा और स्कार्फ हटते ही सबकी चीख निकल पड़ी। 
शिवानी का गला जला हुआ था। सब यह देख हैरत में थे।
“उसने मुझ पर एसिड फैंक दिया। उस पल ऐसा लगा कि सब कुछ घुट गया हो। छह महीने हॉस्पिटल में रहने के बाद मेरी हालत में सुधार हुआ। भगवान की कृपा थी कि चेहरा बच गया। और वोकल कॉर्ड को ज़्यादा नुकसान नहीं हुआ। मोहल्ले के बहुत से लोगों का सोचना था कि मैंने ही कुछ ग़लत किया होगा। बहुत समय लगा मुझे उस दर्द और तकलीफ़ से बाहर आने में।” यह कह वो रो पड़ी। 
कुछ पल के लिए वहां खामोशी छा गई। पर फिर यकायक वहां तालियां गूंजने लगी। सब शिवानी की हिम्मत की दाद दे रहे थे। सभी लडके-लडकियां उस पर गर्व महसूस कर रहे थे। शिवानी को विश्वास नहीं हुआ। आज तक किसी ने उसे इस तरह महसूस नहीं कराया था। 
उन सबके लीडर ने आकर शिवानी से कहा,”शिवानी आप बहुत बहादुर हैं। आज से कॉलेज में आपको कोई तकलीफ़ नहीं होगी। और आप चाहें तो यह स्कार्फ उतार कर कॉलेज आ सकते हो।” 
शिवानी की आंखों में सबके लिए आभार था। वह सबके अपनत्व से गदगद हो गई। कॉलेज का पहला दिन उसके लिए बहुत ही यादगार रहा।
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आस्था सिंघल
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