आसमां की देखो व्यथा
पल में नक्षत्रों से वह सजा,
पल में होती रात अंधेरी
पल में होती रात रूपहली ।
सूरज का देखो प्रकाश
खिलते देखो नित नए पलाश ,
पल में होता है वह भी खत्म
पल में फैला जाता है तम।
बड़े-बड़े पर्वत पहाड़
छूते नित नवीन आकाश ,
पल में झर झर नीचे आते
मिट्टी से मिट्टी मिल जाते ।
तुम और हम तो आम ही प्राणी
मिलती देखो लाभ और हानि,
हानि से बस मत घबराओ
लाभ मिले तो मत इतराओ।
यश अपयश सब उसके हाथ
हमरी तुमरी क्या है बिसात,
सीता पर लांछन था लगाया
द्रोपदी को बीच सभा नचाया।
कितने बड़े ही ज्ञानी ध्यानी
कितने बड़े-बड़े अवतार,
निर्मम नियति नाच नचाए
बड़ा छोटा यह देख ना पाए।
रहे खुशहाल समय के सदके
‘ सीमा’ ने यह सीखा भाई ,
यश ,अपयश, लाभ ,हानि
जीवन ,मृत्यु कुदरत की कहानी।
स्वरचित सीमा कौशल यमुनानगर हरियाणा