आज हो गया पतिदेव से सुबह से घमासान।
बोले क्या करती हो दिनभर बस खाने का काम।
सुनकर ऐसी बातों को गुस्सा में तमतमाई।
लेकर खाट पाट सो गई खाना नही बनाई।
बोले चलो छोड़ दो गुस्सा पूड़ी साग बना लो।
मैंने भी कह दिया तेल न जाओ बाजार से ला दो।
आंखे कर के लाल कहा कैसी सम्भाल रही गृहस्थी।
कभी खत्म हो जाता तेल और कभी खत्म है हल्दी।
गए बाजार तेल लेने जब भाव सुना वापस आये।
बोलो सुनो मेरी जान क्यो न आज रोटी सब्जी ही खाएं।
कुछ खट्टी कुछ मीठी बातों से जीवन में होती बहार।
नोकझोंक जब तक न हो कुछ होता न है प्यार।
इंदु विवेक उदैनियाँ
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