, सोंचता हूं के कमी रह गई शायद
कुछ या जितना था वो काफी ना था,
नहीं समझ पाया तो समझा दिया होता या
जितना समझ पाया वो काफी ना था,
शिकायत थी तुम्हारी के तुम जताते नहीं
प्यार है तो कभी जमाने को बताते क्यों नहीं,
अरे मुह्हबत की क्या मैं नुमाईश करता
मेरे आँखों 🐼में जितना तुम्हें नजर आया,
क्या वो काफी नहीं था I
सोचता हूँ के क्या कमी रह गई,क्या जितना था वो काफी नहीं था I
टूट 💔चुका हूँ बिखरना 💞बांकी है,
बचे कुछ एहसास जिनका 👥जाना बांकी है,
चंद सांसें है जिनका आना बांकी है,
मौत रोज मेरे सिरहाने खड़ी हो पूछती है
भाई आ जा, अब क्या देखना😰 बांकी है I
दूरियां इतनी बढ़ जाएंगी मालूम ना था I
वो बाबू से बेवफा बन जाएंगे मालूम ना था I
हम उनके लिए पागल हो जाएंगे मालूम ना था I
जो अपना चेहरा हमारी आँखों में देखते थे I
वो आईना बदल लेंगे मालूम ना था I
ऐसे बरसेगी उसकी यादें सन्नाटे में मालूम ना था।
दुरियां इतनी बढ़ जाएंगी मालूम ना था I
सोचता हूँ कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें I
उनके मुँह से निकले सारे अल्फाजों को याद कर लूँ कभी I
ऐसी क्या मज़बूरी होगी उनकी की हम याद नहीं आते I
सोचता हूँ तोहफा भेज कर अपनी
याद दिला दूँ कभी I
सोचता हूँ कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें I
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आगे मै आपको और भी बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत करूंगा
तब तक आप बताएं मेरी
मनीष कुमार