इंसान जो कोसता है,
अपनी किस्मत को
होता उसका भ्रम है..
साथ देती नहीं,
हाथों की लकीरें
कर्म ही उसका
सबसे बड़ा धर्म है…
मझधार में फंसी होती है
जिंदगी कभी कभी..
खुद पतवार बनकर,
साहिल तक पहुंचना पड़ता है..
जिंदगी तो एक पहिए के समान हैं,
जो निरंतर चलता जाता है..
इंसान अपनी किस्मत,
अपने कर्मों से बदलता है…
कर्म, धर्म और भाग्य,
जिंदगी का रोचक खेल है..
जीवन में सबसे बड़ा होता है कर्म
और धर्म होती है
उसकी मजबूती
दोनों अगर साथ हो तो
बन जाता है, इंसान का नसीब…
मंजू रात्रे ( कर्नाटक )