पड़ गए उन सबके पैरों में छाले,
जिन पांवों ने धरती को छुआ नहीं,
किस्मत ने खेल ऐसा खेला कि,
वह सब हुआ जो कभी हुआ नहीं।
जिनके दान के चर्चे तीनों लोकों में फैले,
आज भिक्षु बन द्वार-द्वार भटक रहे हैं,
हम मानव भला क्या लड़ें किस्मत से,
जब विधाता का लेख ईश्वर से मिटा नहीं।
हाथों की लकीरों में सिमटी है जिंदगी,
किस्मत के हाथों की हम कठपुतली हैं,
कोई सो रहा मखमली बिस्तर की गोद में,
कोई पसीना बहाकर भी रोटी पाया नहीं।
स्वरचित रचना
रंजना लता
समस्तीपुर, बिहार