तू हुआ यूं कि पिछले साल लॉकडाउन लगने पर श्रीमती शर्मा और श्रीमान शर्मा घर में बंद हो गए नई-नई शादी हुई थी अभी बच्चे भी नहीं थे। एक दूसरे के साथ रह रह कर भी थक गए ।अब उन्हें कुछ क्रिएटिव कार्य करना था, कुछ क्रियात्मक था लानी थी, रचनात्मकता  इत्यादि
श्रीमती शर्मा ने किताब लिखने की सोचे और मैं लगी कहानियां लिखने कभी कुछ फिर उन्होंने निर्णय लिया कि नहीं मैं तो उपन्यास लिखूंगी।
अब वह ढेर सारे आईडिया लेकर आ जाएं  श्रीमान शर्मा के सामने अब वह घबराए कि उनको लेखन का कोई अनुभव नहीं उनकी कहानियां सुने ना उनसे कोई राय दी जाए।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि श्रीमती शर्मा को घर का कार्य कुछ नहीं आता वह केवल पढ़ाई करती रही, शादी हो गई। श्रीमान शर्मा जी ऑफिस से आकर घर आते और खाना बनाते हैं और लॉकडाउन में तो सारे घर की जिम्मेदारी उनकी हो गई है।
ऐसे ही खट्टे मीठे अनुभव उनको हो गए और उन्होंने अपनी पत्नी के साथ वह बांटने शुरू कर दिए उनको खुद पता ही नहीं चला कब वह कहानियां इतनी अच्छी सुनाने लगे पत्नी भी लिखने लगी।
डिजिटल पत्रिका में जब यह छप गई तो 1 दिन श्रीमान शर्मा जी के पास ऑफर आया इस पुस्तक में जो हिस्सा पति-पत्नी लोग डाउन में कैसे रहें और खास करके रसोई के जो व्यंजन बने हैं।
वह बहुत ही अच्छा लिखा है अगर उनकी एक अलग से किताब निकाली जाए व्यंजनों की तो ज्यादा फायदा रहेगा।
लेकिन श्रीमान शर्मा तो श्रीमती शर्मा की किताब छपवाना चाहते थे। प्रकाशक ने कहा कि हम इसके पैसे लेंगे। हां यदि आप हमें व्यंजन वाली किताब लिखकर दें तो उल्टा हम आपको पैसे देंगे।
श्रीमान शर्मा जी को समझ में ना आए कि पत्नी जी से कैसे कहा जाए और वह रूठ कर बैठ गई कि तुम ने जानबूझकर ऐसा किया है।
2 दिन सोचने के बाद श्रीमान जी ने कलम उठा ली और शर्मा जी ने एक रेसिपी बुक लिख डाली जो डिजिटल ही उनकी काफी अच्छी चली।
लेकिन इसके साथ ही यह बात भी बाहर आ गई कि शर्मा जी की पत्नी को खाना बनाना नहीं आता, सालों से जो  टिफिन लेकर आते थे और वाहवाही लूटते थे वह उनकी खुद की मेहनत थी।
हां पत्नी जरूर इन सब में चलते नाराज रहे परंतु शर्मा जी के लिए तो यह किताब किस्मत की किताब साबित हुई।
वंदना शर्मा
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