कोई मेरे अंदर पल पल पलता है,
हरकदम साया बन साथ चलता है।
दस्तक देता बदलते मौसम की तरह
दिल खामोशियों से सरगोशी करता है।
बादल में छुप उड़ जाना मंज़ूर इसे
हर दिन आकार चाँद सा घटता बढ़ता है।
बेहिसाब ख़्वाहिशों की लहरें गिरती उठती
जानते मगर यहाँ जो चाहो वो कब मिलता है।
बिन पंखों से परवाज़ ऊँची भरोगे भी कब तक
अर्श से फर्श तक आने में वक्त नहीं लगता है।
गजब गरुर इसका बे-जान होने देता नहीं
बेहिस चाहतों का किस्सा छुपा रखता है।
तकदीर की लकीरों में तय कर लाये सब
तो महत्व आकांक्षाओं का कहाँ रहता है।
हर कोई चाहता है इच्छायें पूर्ण करना पर
ये किस्मत का खेल ही सबको छलता है।
स्वरचित
शैली भागवत ‘आस’🖍️