रमन ~~ओ~~ रमन ,दादा जी ने आते ही आवाज लगाई।
पापा जी वो ट्यूशन गया है,5 बजे आएगा।
अरे बहू अभी तो आया है,स्कूल से !
हां पापाजी ,शहर का बड़ा स्कूल है ,बड़ी मुश्किल से शेखर के बॉस की सिफारिश से एडमिशन हुआ है,तो मेहनत तो करनी पड़ेगी_पानी लाती मुग्धा ने कहा।
रमन अपने दादा जी का बड़ा दुलारा था,दादा जी आज ही गांव से आए थे।
उसकी झलक के लिए लालायित थे ,लेकिन 7 साल का रमन मशीन बन चुका था, 2 बजे छुट्टी के बाद जल्दी जल्दी आकर खाना खाता कि ट्यूशन का समय हो जाता।
दादा जी रमन के कमरे में आए ,वीडियो गेम,एवेंजर के छोटे छोटे खिलौने,तरह तरह की कारें,और ढेर सारी किताबें भरी पड़ी थीं।
दादा जी बारीकी से कमरे का अध्ययन कर रहे थे, शिक्षा विभाग में बड़ी पोस्ट से रिटायर हुए थे दादा जी।
एक बेटा था,शेखर जिसकी शादी हो गई थी , और उसकी ही बगिया का फूल था रमन।
रमन ट्यूशन से लौट कर आया तो ,दादा पोते का मिलन हुआ।
मुरझाया ,किताबों के बोझ तले दबा कंधा बाहें फैलाए अपने दादा जी के वक्षस्थल की छांव में चिपक गया।
दादा जी गांव से बाग के रसीले आम और ,आम पापड़ जो रमन को बहुत पसंद था,लेकर आए थे।
मुग्धा कब से पापा जी के झोले के आस पास मंडरा रही थी ,उसकी भी आम कमजोरी थी ,लेकिन दादा जी ने उसे झोला ले जाने नहीं दिया।
रमन के आने के बाद ही उन्होंने मुग्धा को झोला पकड़ाया । मुग्धा ने शिकायती लहजे में कहा _ ऊंह ..ये क्या पापा जी ,आप मुझसे और शेखर से प्यार नहीं करते ? जब तक रमन नहीं आया तब तक आपने झोला नहीं दिया।
पापा जी हंसने लगे _अरे बेटा! ऐसी बात नहीं,अब मूल से सूद तो प्यारा ही होता है।
और सभी हंसने लगे।
रमन बहुत देर तक दादा जी के पास खेलता रहा ,दादा जी को जैसे एक खिलौना बरसों बाद मिला हो।
रात को सबने एक साथ डिनर किया ,रमन ने कहा _मम्मी क्या मैं दादा जी के साथ सो जाऊं?
मुग्धा ने कहा _अरे नहीं ,दादा जी को दिक्कत होगी ।अभी तुम्हें एक घंटे और जाग कर होमवर्क निपटाने हैं।
अरे बहू सोने दे ना मेरे साथ , मैं कौन सा जल्दी सोऊंगा।
अरे नहीं पापा जी ,आज आप थके हैं आप सो जाइए ,कल से रमन आपके साथ ही सो जायेगा।
सुबह रमन स्कूल के लिए तैयार होकर जाने लगा। भारी स्कूल बैग,वाटर बोतल, मुग्धा बड़ी जतन से उसके कंधे पर टांग रही थी।
बेटा इतना भारी बैग? कैसे लेकर जायेगा।
अरे पापा जी यहीं बस स्टैंड तक तो जाना है ,फिर तो बस में रख देगा अपना बैग।
दादा जी कुछ नहीं बोले।
मुग्धा बस स्टैंड तक रमन को छोड़ आई ,अब शेखर को ऑफिस भेजना था।
शेखर नहा धो ब्रेकफास्ट के लिए टेबल पर आ गया।
मुग्धा, गरमा गरम परांठे बना शेखर और पापा को देने लगी।
दादाजी ने शेखर की ओर मुखातिब होते हुए कहा_तुझे अपने बच्चे का बचपन छिनता नहीं दिख रहा है?
शेखर की समझ में नहीं आ रहा था कि पापा क्या कहना चाह रहे हैं?
उसने कहा पापा ,आप का क्या मतलब है ? रमन स्कूल नहीं जाए केवल खेले । पता भी है ,आज जमाना बहुत आगे जा चुका है , कांटे की प्रतियोगिता के इस दौर में आप क्या चाहते हैं वो फिसड्डी रह जाए।
पापा जी शांत रहे ,उन्होंने कहा क्या मैने तुम्हें नहीं पढ़ाया,स्कूल से आते ,बैग फेंक फुटबॉल खेलने भाग जाते थे ,लौटकर हाथ पैर धो अपना स्कूल का काम करते,तुम्हारी मां तुम्हें पढ़ा देती थी।
रविवार को घर में सब मिल कैरम, लूडो खेला करते थे,शारीरिक और मानसिक दोनों विकास होता था ।
अरे पापा_ वो दौर दूसरा था ,तब इतनी किताबें और स्कूल में इतने काम नहीं दिए जाते थे।
अच्छा ,मुग्धा और पापा चलता हूं ,ऑफिस जाने में देर हो रही है,शाम को मिलता हूं।
शेखर ऑफिस के लिए निकल गया।
मुग्धा भी ,रमन को मशीन की तरह काम करते देख परेशान होती ,लेकिन वो भी कम महत्वकाँछी नहीं थी ,जब वो टीवी पर छोटे छोटे बच्चों को डांस करते देखती तो उसका भी मन करता कि रमन को भी डांस सिखाए और वो भी मंच पर आए।
दादा जी से रमन की ये अवस्था देखी नहीं जा रही थी ,उन्होंने गौर किया था कि रमन का कंधा आगे की ओर झुक रहा था।नाजुक कंधे पर 10,15 किलो के वजन का बैग।
“लगातार बैग के वजन ढोने से आगे चलकर काईफोसिस होने की संभावना है,जिसे सामान्य भाषा में कूबड़,कहते हैं,और सांस की परेशानी भी इससे शुरू हो जाएगी।”
वे चुपचाप अपने कमरे में जाकर बैठ गए।
काम निपटा मुग्धा आकर ससुर जी को सोच में डूबे देख बोली_क्या बात है पापा?
कुछ नहीं,उन्होंने बात टाल दी।
कुछ तो…।आप रमन को लेकर परेशान हैं?
क्या करें पापा स्कूल वाले एक ही विषय की अलग अलग पब्लिकेशन की किताबें खरीदवातें हैं,कॉपियां भी ब्रांड लिख कर देते हैं,जो सबसे महंगी हो।किताबों का तो ये हाल है,एक किताब पढ़ाई होती है ,और तीनों वैसे के वैसे सालों भर रखी रहती है ,लेकिन न खरीदो तो सजा देते हैं बच्चों को_मुग्धा बोली।
तो तुम अभिभावक क्यों विरोध नहीं करते _पापा ने कहा।
अरे पापा इनकी तानाशाही है जो विरोध करे उसके बच्चे को स्कूल से निकाल देते हैं,अगर दबाव में रखना भी पड़ा तो बच्चे के साथ दुर्व्यवहार करते हैं_ मुग्धा ने कहा।
तुम्हें पता है मुग्धा ,मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा (आरटीआई) एक्ट 2009 के अनुसार बच्चे के अपने वजन के 10% से अधिक वजन का बस्ता गैर कानूनी है।
विदेशों में बस्ते के वजन को लेकर मानक तय होते हैं,लेकिन भारत में ऐसा नहीं है।
जाने दीजिए पापा जी अपनी शिक्षा व्यवस्था में सरकार कितना भी सुधार कर ले,लेकिन ये शिक्षा माफिया,हर जगह से कमीशन कमाते हैं इसलिए वे किसी न किसी बहाने बच्चों पर किताब का अतिरिक्त बोझ डालते रहेंगे।
तुम सही कह रही हो मुग्धा ,बड़े स्कूल के नाम से लोग एडमिशन कराने के लोभ से लोग बच नहीं पाते इसी का फायदा उठा रहे हैं ये लोग।
मासूम बचपन भारी भरकम बस्ते के नीचे रौंदा जा रहा है,ये सोच का विषय है।
समाप्त
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