साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु प्रदत्त विषय
किताबी कीड़ा होना
कविता
जो करते हैं, अधिक पढ़ाई।
उनकी करते लोग बढ़ाई।
हर पल रहते अध्ययन शील।
जैसे किताबों से हुई डील।
भूख प्यास उनकी खो जाये।
पढ़ने में यूं लगन लगाये।
उनको मिले मान सम्मान।
होता कभी कभी अपमान।
जिसने पढ़ने का उठाया बीड़ा।
उसे कहते लोग किताबी कीड़ा।
पढ़ पढ़ नज़र हुई कमजोर।
रोजगार न मिला तो शोर।
कोल्हू जैसे बैल हो गये।
इंटरव्यू में फेल हो गये।
कीनी थी दिन रात पढ़ाई।
किंतु अब तक काम न आई।
फिर भी पढ़ते रहते किताब।
इनको अनोखा मिला खिताब।
सुनकर मन में होती पीड़ा।
कहते लोग किताबी कीड़ा।
हर इक बेरोजगार की पीड़ा।
रोजगार बिन किताबी कीड़ा।
करना पड़ेगा अब कुछ काम।
सब सुख दाता केबल राम।
बलराम यादव देवरा छतरपुर