काश विहग तू खोल पाती नल।
पानी की किल्लत हो कोई हल।
नदी-तालाब सब लगे सूखने।
मानवकर्मों से तू लगी दूखने।
पहले तो तू भी निर्मल जल पीती होगी।
नलों पर बिना भटके ही जीती होगी।
पर अब नदियों में पानी कम,कीचड़ ज्यादा।
प्रकृति और मानव दोनों  रहे ना सीधा सादा।
लोग तेरे लिए बर्तन में पानी रखते हैं जरूर।
अपने इस पुण्य पर करते हैं अत्यंत गुरूर।
पर पानी बर्बाद करना बंद ना करते।
जल संकट से ये  मानव क्यों ना डरते।
              -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण
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