साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु प्रदत्त विषय
कान पर जूं तक न रेंगना ।
गीत कविता
तर्ज
जिंदगी बन गए हो तुम।
कैसी लागी लगन,
अपनी धुन में मगन।
हां कहें,या करें, न मना।
कान पर जूं, तक न रेंगना ।
1 वो किसी बात पर, ध्यान देते नहीं।
उनका तन है, कहीं, और मन है, कहीं।
आगे न बढ़ रहे, उनसे क्या क्या कहें ।
टेक जिनको धरती पर है, रेंगना 0….
कान पर जूं तक न रेंगना।
2 रानी कैकेई ने जब ,मांग ली मांग है।
मांग से सूनी हो गई,तभी मांग है।
रामजी वन चले,लेके जीवन चले।
रानी के कान पर जूं तक न रेंगना 0…..
3 जब रावण ने सीता,हरण कर लिया।
अपने कुल का तो निश्चित मरण कर लिया।
कहती मंदोदरी,हरि के संग है हरि।
उनके आगे टांग न अड़ाना 0….
कान पर जूं तक न रेंगना।
4 पाक के तो इरादे रहे,पाक ना ।
सारी दुनिया की नजरों में, वो पाकना।
भीख मिलती नहीं,इस जहां में कहीं।
पड़ा घुटनों के बल रेंगना 0……
5 आलसी आदमी, करता आलस सदा।
नहीं करता यतन, नहीं सुनता सदा।
केबल राम से,हित करो काम से।
वरना भूपर पड़े रेंगना 0……..
कान पर जूं तक न रेंगना।
बलराम यादव देवरा छतरपुर
बहुत सुंदर आदरणीय जी।