आंखों में लगे तो श्रृंगार हो जाता है
रिसे तो बादलों का फुहार हो जाता है
खुली पलकों में स्वप्न हज़ार सजाए
काजल बन के पी का प्यार हो जाता है
नज़र का टीका प्रेम प्रीत में भर के
माँ के स्नेह से भरा संसार हो जाता है
नई सहर शीत लहर रेखाओं के मध्य
हवा शबनमी फिर गुलज़ार हो जाता है
जुड़ता है ऐसा कुछ रिश्ता प्रीत बंधन में
आंखों का काजल हरसिंगार हो जाता है।
नेह यादव
स्वरचित रचना।