सुनो,
चलो ना कहीं दूर चलते हैं
जहाँ बस तेरा मेरा आशियाँ बने,
दुनिया की चकाचौंध से परे,
तारों की छाँव तले,
बहारों से सजी हो गलियां स्वागत में,
चंचल किरणेँ भास्कर की,
सुंदर कलियों की खिलखिलाहट में
नया सवेरा चुनते हैं,
चलो ना, कहीं दूर चलते हैं,
तितलियों के गुंजर को,
मधुर संगीत सा सुनते हैं,
हाथों में हाथ ले एक दूजे का,
कभी ना अलग होने का वादा करते हैं,
चलो ना, कहीं दूर चलते है
सुनहरे दरखतो की छाँव में,
इक दूजे के सिरहाने लेटकर,
ख्वाबों का नया आशियाँ बुनते है,
नहीं ख्वाहिश मुझे हीरोँ मोतियों के हार की,
ख्वाईश है मुझे तो बस, तेरे प्यार के श्रृंगार की,
ख्वाईश है मुझे तो बस, तेरी बांहों के हार की,
चलो ना, आज हर ख्वाईश ए आलम को मुक़्क़मल करते है,
कहीं दूर चलकर, एक दूजे को मुक़म्मल करते है
निकेता पाहुजा
रुद्रपुर उत्तराखंड