कल कान्हा ने राधा से कहा
मैं तन्हाई में तुझे खोजता हूँ
होता हूँ अकेला तुझे याद करता हूँ।
काम नहीं होने पर तुझसे ही बात करता हूँ।
देख मैं तुझें कितना प्यार करता हूँ।
राधा ने कहा ये यकी है मुझे
कि कान्हा तुझे मुझसे प्यार बहुत हैं
लुटा दो सारा जहाँ इतनी मोहब्बत हैं।
पर
कान्हा मैं तुझे तन्हाई में खोजती नही हूँ
आँखे बंद करती हूँ और तुझे पा जाती हूँ।
मैं याद नहीं करती हूँ तुझे
क्योंकि खुद को कहाँ तुझसे जुदा पाती हूँ।
तू पास हो या ना हो, बातें तो तुझसे ही करती हूँ।
इसलिए
सुन कान्हा मैं भी तुझसे प्यार करती हूँ।
आज से नही उस पल से करती हूँ
जब मैं तुझकों पहली बार देखती हूँ।
चूम लेती हूँ मैं तेरे कदमों के निशान
पर तेरी बाँसुरी से चिढ़ती हूँ।
मैं हर उस पल को भी प्यार करती लेती हूँ
सूरत जिस पल में मैं तेरी देख लेती हूँ।
इसलिए
कान्हा मैं भी तुझे बहुत प्यार करती हूँ।
उस दीवानी की दीवानगी की हद तो देखों
चूम लिया उसने वो जर्रा-जर्रा जहाँ से उसका प्रियतम गुजरा।
गरिमा राकेश ‘गर्विता’