———————————————–
किसी को बख्शा नहीं यारों, कलम की इस हुकूमत ने।
बनकै आजम मेरी रूह भी, हुकुम मुझको भी देती है।।
फकत मुहब्बत नहीं इसको, मेरे अजीज और मुझसे।
बात इंसाफ की हो तो, सजा मुझको भी देती है।।
किसी को बख्शा नहीं यारों———।।
दर्द हो चाहे मुफ़लिस का, जख्म हो किसी यतीम पे।
मर्ज चाहे अमीर का हो, सितम हो चाहे दुश्मन पे।।
कहा है सच को सच ही, छुपाया सच नहीं इसने।
बात ईमान की हो तो , नसीहत मुझको भी देती है।।
किसी को बख्शा नहीं यारों———।।
नफा में देखा नहीं इसने, इजाफा मेरी हस्ती का ।
इसने खयाल किया है, सभी लोगों की बस्ती का।।
सलाम गैरों को किया है, तौहीन में छोड़ा नहीं मुझको।
बात फिर शर्म की हो तो, धिक्कार मुझको भी देती है।।
किसी को बख्शा नहीं यारों——–।।
ख्वाब सिर्फ मेरा ही नहीं, चाहत माँ की भी है इसको।
नफरत दुश्मन से ही क्यों, यकीन अपनो पे नहीं इसको।।
वतन को चाहती है कितना, तस्वीर यही है काफी ।
खूं दुश्मन का ही क्यों, मौत मुझको भी देती है ।।
किसी को बख्शा नहीं यारों——–।।
रचनाकार एवं लेखक- 
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी. आज़ाद
ग्राम- ठूँसरा, जिला- बारां(राजस्थान)
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

<p><img class="aligncenter wp-image-5046" src="https://rashmirathi.in/wp-content/uploads/2024/04/20240407_145205-150x150.png" alt="" width="107" height="107" /></p>