साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु प्रदत्त विषय
कलई खुलना।
कविता
कलई किसी की जब खुल जाती।
इज्जत मिट्टी में मिल जाती।
दिन अरु रात नींद न आती।
चिंता सांपिन डसती जाती।
सुधा पान जब राहु कींना।
भेद खोल रवि शशि ने दीना।
चक्र से हरि दो टुकड़े कीना।
राहु से तन केतु धर लीना।
कालनेमि निज रूप छिपाए।
कपि पग से मकरी अकुलाये।
खल का सारा भेद बताए।
भेद खुला तो प्रान गंवाये।
रावण अपना रूप छिपाए।
साधु बनकर भिक्षा मंगाये।
सीता भिक्षा लेकर आई।
कपटी खल पहचान न पाईं।
जानकी पहले जान न पाईं।
भेद जानकर फिर पछताईं।
रावन की हुई जगत हंसाई।
अपने कुल की नाश कराई।
रावन को राम जब मार न पाते।
सिर भुज तीसों काट गिराते।
बिभीषन प्रभु को भेद बताए।
राम जी सर इकतीस चलाए।
तभी मार दशशीश को पाए।
दादा जी हमको बतलाये ।
कि घर के भेदी लंका ढाये ।
राज की बात हम आज बताते।
केबलराम जी सृष्टि चलाते।
बलराम यादव देवरा छतरपुर