(शेर)- मुझको मतलब क्या महफ़िल से, जब बाग मेरा उजड़ गया।
हो गई बर्बाद मैं अपनों से, सुहाग मेरा यहाँ उजड़ गया ।।
कर दी सबने हिन्दी मेरी, अब शेष यहाँ क्या मेरा रहा।
मुझको मतलब क्या शमां से, जब संसार मेरा यहाँ उजड़ गया ।।
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करूँ विश्वास मैं किस पर, कर दी मेरी सबने हिन्दी।
करूँ कैसे अब श्रृंगार, चुरा ली मेरी सिर की बिन्दी।।
करूँ विश्वास मैं किस पर———–।।
बनती दुल्हन कभी मैं यहाँ, सजाकर फूलों से अपने को।
लगाती हाथों में मेहंदी , संगिनी किसी की बनने को।।
मुरझा गया मेरा गजरा, लगाये कौन मेरे हल्दी ।
करूं कैसे अब श्रृंगार ,चुरा ली मेरी सिर की बिन्दी।।
करूँ विश्वास मैं किस पर———-।।
बजती घुंघरू की तरह मैं भी, बाहें तब सारी खिल जाती।
जलती ज्योति की तरह मैं भी,दुनिया मेरी रोशन हो जाती।।
लेकिन मैं हो गई एक शाम, अंग्रेजी जब बनकै आई आंधी।।
करूँ कैसे अब श्रृंगार , चुरा ली मेरी सिर की बिन्दी।।
करूँ विश्वास मैं किस पर ————।।
वतन अब नहीं रहा मेरा, नहीं कोई शान मेरी यहाँ अब।
अपने ही बेच रहे हैं मुझको, नहीं कोई इज्ज़त मेरी यहाँ अब ।।
मैं किसको कहूँ यहाँ अपना, बना दिया है मुझको रद्दी।
करूँ कैसे अब श्रृंगार , चुरा ली मेरी सिर की बिन्दी।।
करूँ विश्वास मैं किस पर———।।
रचनाकार एवं लेखक-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद