करो तुम सम्मान, वृद्धजनों का।
अपमान नहीं तुम, इनका करो।।
बुढ़ापा तुम्हारा भी , आयेगा एक दिन।
यही सोचकर, सेवा वृद्धों की करो।।
करो तुम सम्मान——————-।।
कितने जतन से तुमको ,पाला होगा।
सहे होंगे कितने कष्ट, माँ- बाप ने।।
सपनें सुनहरे, देखे होंगे तुम्हारे।
कितने पूजे होंगे देव, माँ – बाप ने।।
अब आई इनकी , वृद्धावस्था तो।
जिम्मेदारी से देखरेख, इनकी करो।।
करो तुम सम्मान——————–।।
भगवान के तुल्य है , ये वृद्धजन।
करो इनकी पूजा, सच्चे मन से।।
मिलेगा ज्ञान , जीवन का इनसे।
मिलेगा आशीर्वाद, सच्चे मन से।।
करो नहीं कभी , इनका तिरस्कार।
सदा गुणगान तुम, इनका करो।।
करो तुम सम्मान——————-।।
नहीं भूलों तुम, अपनी संस्कृति को।
तुम पर है इनका, कर्ज बहुत।।
इनके कारण ही है, हस्ती तुम्हारी।
मत करो इनपे, जुल्म बहुत।।
करो साकार तुम, इनके सपनें।
वृद्धाश्रमों का , नहीं निर्माण करो।।
करो तुम सम्मान——————।।
साहित्यकार एवं शिक्षक-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)