ओ करोना तू कहां से आया,
क्यों सबको कर दिया पराया,
तेरा आना किसको रास न आया,
सबकी मुसकाराट तुने छीनी,
ओ करोना तू हमें न रास आया,
ये कैसा चक्रव्यूह है तूने फैलाया,
ओ करोना तू कहां से आया,
क्यों सबको कर दिया पराया।
ये कैसा खेल है तूने राचया,
फिजाओं में है ज़हर किसी ने घोला,
मानव का अविष्कार ही बन गया अभिशाप,
अपने ही अपने से खोफ खा रहे हैं,
एक ही घर में होकर भाग रहे हैं,
ओ करोना तू कहां से आया,
क्यों सबको को कर दिया पराया,
तेरे कारण कितने बच्चे यातीन हूऐ,
तेरे कारण कितनी औरतें विधाव हुईं,
न जाने कितनी मां औ ने अपने लाल खो दिये,
फिर भी तेरा आतंक न हूआ ख़त्म,
ओ करोना तू कहां से आया,
क्यों कर दिया सबको पराया,
ये कैसा खोफनाक मंजर हैं,
हर तरफ़ चीखों का मंजर हैं,
जलाने को न जगह है,
कम पड़ रही भूमि है,
पर अब तू सुन ले ध्यान से,
हम हार नहीं मानेंगे तू कर ले,
जितना करना है तुझे सितम
तूझे एक दिन हार कर दीखयेगे।।
कुमारी गुड़िया गौतम (जलगांव)