करुणा में डूबे
मेरे हृदय में
तेरे प्रेम की
रागिनी बजती हैं।
हाहाकार है मेरे
शब्दों में
अंतस में वेदना
भरती हैं।
उत्स मेरी भावना का
अविरल बहता
रहता हैं
अंतर्मन की मही
फिर भी अतृप्त
रहती हैं।
गरिमा राकेश
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