“सुनो, आपके लिए नाश्ते में क्या बनाऊं” ? “आप क्या खाना पसंद करेंगी” ? “अरे , आपको यह भी याद नहीं कि आज करवा चौथ है ? आज के दिन तो मैं व्रत रखती हूं ना” । “हूं .. । याद है इसीलिए तो पूछ रहा हूं” । “कमाल करते हैं आप भी ? जानते हैं कि मेरा व्रत है फिर भी पूछ रहे हैं ? आज सुबह से ही मसखरी करने का मूड है क्या” ? “नहीं । इतने पवित्र दिन पर मैं मसखरी करने का दुस्साहस नहीं कर सकता हूं” “तो फिर ये क्या है ? साफ साफ बताइये कि नाश्ते में क्या लेना है आपको ? यूं पहेलियां मत बुझाइये । और भी बहुत सारा काम पड़ा है अभी । जल्दी बताइये” । “नहीं , आज कोई नाश्ता नहीं , कोई लंच नहीं । केवल डिनर लेना है” “क्या ….” ? आश्चर्य से देखा काव्या ने । उमेश मंद मंद मुस्कुरा रहा था ।”मजाक मत कीजिए । बहुत टाइम हो गया है , नाश्ता बनाने में भी टाइम लगेगा । प्लीज बता दीजिए न कि क्या बनाना है नहीं तो जो मैं बनाऊंगी वह खाना पड़ेगा” । कृत्रिम गुस्से से देखते हुये काव्या बोली “वैसे तो जो तुम बना दोगी, मैं खा लेता पर आज नहीं खाऊंगा” “क्यों , आज क्या है” ? “अरे, आपने ही तो बताया था कि आज करवा चौथ है । खुद ही भूल गई” ? “हां, वो तो याद है पर उसका आपके नाश्ते से क्या वास्ता” ? “अरे वाह ! वास्ता कैसे नहीं है ? आप आज क्या नाश्ता करोगी” ? “कैसी पागलों वाली बात कर रहे हो ? करवा चौथ पर मैं नाश्ता करूंगी क्या” ? “और मैं कर लूं” ? “हां , मर्द लोग तो करते ही हैं । इसमें आश्चर्य कैसा ? आप भी तो अब तक करते आये हैं । आज कुछ स्पेशल तो नहीं है” “आज से नहीं करूंगा” “पर क्यों” ? “मैं भी करवा चौथ का व्रत रखूंगा” काव्या को जैसे बिजली का जोरदार झटका लगा था । “तुम और करवा चौथ का व्रत” ? “हां, मैं क्यों नहीं” ? “कभी किया नहीं ना तुमने, इसलिए” “कभी किया नहीं इसका मतलब यह तो नहीं है कि कभी करूंगा भी नहीं । क्यों है न” ? “मेरा मतलब है कि यह व्रत तो स्त्रियां ही करती हैं” “क्यों करती हैं स्त्रियां यह व्रत” ? “पति की दीर्घायु के लिये । घर की सुख शांति और समृद्धि के लिये” “तो जब पति की दीर्घायु के लिए एक पत्नी व्रत करती है तो क्या पत्नी की दीर्घायु के लिए एक पति को व्रत नहीं करना चाहिए ? क्या घर की सुख शांति और समृद्धि के लिए पत्नी ही व्रत रखेगी , पति नहीं” ? काव्या निरुत्तर हो गई । उसे तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि उमेश भी ऐसा सोचता है । वह क्षीण प्रतिवाद करते हुए बोली “आप दिन भर ऑफिस में काम करेंगे , दिन भर भूखे कैसे रहेंगे” ? “अच्छा , आप तो जैसे घर में रहकर दिन भर पलंग तोड़ेंगी” ? इस प्रश्न का कोई जवाब काव्या के पास नहीं था । विषय बदल कर वह बोली “इस बार आपको क्या हुचंग छूटी जो करवा चौथ का व्रत कर रहे हैं” ? “नहीं, हुचंग नहीं छूटी बल्कि सत्य का बोध हुआ” “सत्य का बोध ? वो कैसे” ? “करवा चौथ कोई ऐसा वैसा व्रत नहीं है । यह व्रत है पति पत्नी के प्रेम , समर्पण, सम्मान, समझ, संस्कार और सामंजस्य का । जब पत्नी यह व्रत रखती है तब वह अपने पति में पूर्ण आस्था व्यक्त करती है । वह अपने प्रेम का इजहार करती है । अपने पति के लिए सजती संवरती है और प्रभु से कामना करती है कि उसके पति का संपूर्ण प्रेम उसे प्राप्त हो । वह प्रभु से अपने पति की मंगल कामना करती है । घर में सामंजस्य बना रहे, यह प्रार्थना करती है । सुख समृद्धि बनी रहे ऐसी कामना करती है । वह स्वयं के लिए कुछ नहीं चाहती है सिवाय प्रेम और उचित मान सम्मान के । तो क्या एक पति का यह दायित्व नहीं है कि वह भी कुछ ऐसी ही कामना प्रभु से करे ? वह भी चाहता है कि उसके प्रेम का दीपक अनवरत जलता रहे । प्रेम का अथाह सागर सदैव हिलोरें लेता रहे । प्यार की बरसात हमेशा होती रहे । अपनी पत्नी की कुशल मंगलता की कामना एक पति भी कर सकता है । अपने परिवार के कल्याण की  प्रार्थना वह भी कर सकता है । अकेली पत्नी की ही जिम्मेदारी नहीं है घर परिवार , दोनों की है । जब मण्डप के नीचे सात फेरे लिये थे और सुख दुख में सदैव भागीदार रहने की प्रतिज्ञा की थी तो आज करवा चौथ के दिन मैं आपको अकेला कैसे छोड़ सकता हूं ? ये माना कि यह अक्ल मुझे पहले नहीं आई पर “जब जागो तभी सवेरा” वाली कहावत भी तो मेरे जैसे लोगों के लिए ही तो बनाई गई है । आज मेरी बुद्धि में यह बात आई है कि जब घर की लक्ष्मी उपवास पर है तो हम कैसे भोजन कर सकते हैं ? इसलिए हम भी आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहेंगे । इस घर की जिम्मेदारी हम दोनों की है तो फिर मिलकर यह व्रत क्यों न रखें ? कहो, कैसा विचार है” ? काव्या तो एकटक देखे जा रही थी उमेश को । वह कुछ सुन रही थी, कुछ समझ रही थी और कुछ ‘गुन’ रही थी । उमेश का आज एक नया ही रूप वह देख रही थी । आज सचमुच उसके व्रत का पुण्य मिल गया था उसे ।

 श्री हरि 

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