किसलिए कमजोर पड़ जाते है हम,
बस इसलिए कि क्या कहेगा ज़माना,
चुप हो कर सब सहते हैं आखिर किसलिए?
यूँ चुप रहकर उन दरिंदो की हिम्मत ना बढ़ाना,
धर कर रूप चंडी सा
संहार हैवानियत का कर जाना,
कर प्रतिज्ञा,अब डरना नहीं,
डटकर सामना कर जाना,
अस्त्र उठाकर तू भेड़ियों को भेद जाना,
अब एक नई उम्मीद,एक नई राह,
एक नया मुकाम पाना है हमें,
छू लेना है अब एक नया आसमां
झुकना नहीं,डरना नहीं
अब आवाज़ कर लो बुलंद अपनी,
ज़ब भी कोई देखे, बदनजरों से तुम्हें
बनकर चंडी संहार करो
स्त्री शक्ति हो तुम
शारीरिक भूख मिटाने का कोई सामान नहीं..
उठो नारी शक्ति मज़बूत बनो,
ये लड़ाई तुम्हें खुद ही लड़नी होगी।
मोमबत्तियों की लौ से ये राह नहीं आसान होगी
भर लो ज्वाला अपने मन में,
ठान लो अपने मन में
अत्याचार से भरी ना कोई
ज़ब रात और सुबह होगी,
महिला दिवस की असली कहानी तब ही सार्थक होगी।
स्वरचित व मौलिक रचना
निकेता पाहुजा
रुद्रपुर उत्तराखंड
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