कभी -कभी लगता है कि औरत बंदिशो मे जकड़ी एक कैदी है,
इच्छाओं को पूरा करने की इजाजत मांगती एक फरियादी है!
रूढियो का दामन धामे एक बडी आबादी,गला उसकी इच्छाओ का घोंटती है,
कभी जब वह अपने मन की करके,पुरानी विचारधारा के नियम तोडती है!
कभी -कभी मन उसका भी चाहे,सुनना अपने अंतर्मन को,
अपनी मरजी से जीने का,अपनी मरजी से ढकने को अपने तन को!
अलग-अलग है नियम कायदे,स्त्री-पुरुष के लिए समाज मे,स्वछंद घूमे पुरूष हरपल,
स्त्री के लिए अभी भी समाज मे लक्ष्मण रेखा बाकी है!
सदा जीती आई औरो की खातिर, अपनी इच्छाओ का गला घोंटने की आदी है!
इच्छाओ को पूरा करने की इजाजत मांगती फरियादी है!
                                           श्वेता अरोड़ा
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