(शेर) – कुछ सच्चाईयां ऐसी है, जो नहीं इन किताबों में कहीं।
       देखो उठाकर नजरें तुम, जो मौजूद हैं तुम्हारे यहीं कहीं।।
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हाँ, ऐसी भी तस्वीर है हिंदुस्तान की।
सच, ऐसी भी सूरत है यहाँ इंसान की।।
यदि होता नहीं है यकीन तुम्हें।
तो जाकर खुद देख लो तुम इन्हें।।
हॉं, ऐसी भी तस्वीर है————–।।
ओढ़े हुए हैं कुछ नकाब चेहरे पे।
गुमनाम है कुछ जिंदगियां पहरे में।।
लूटते है इनकी इज्जत वो लोग।
जो बने है मसीहा इस वतन में ।।
हॉं, ऐसी भी तस्वीर है————-।।
नारी को देवी यहाँ कहते हैं।
फिर भी बिकती है इनकी जवानियाँ।।
देते है नसीहत जो सद्कर्मों की।
बनती है उनकी सेज मासूम कलियाँ।।
हॉं, ऐसी भी तस्वीर है————-।।
सोते हैं अभी भी भूखे कुछ लोग।
दबाये हुए हैं दौलत को कुछ लोग ।।
मासूमों का खूं अभी भी होता है।
बेच रहे हैं देश भी यहाँ कुछ लोग।।
हॉं, ऐसी भी तस्वीर है————–।।
रचनाकार एवं लेखक- 
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
ग्राम- ठूँसरा, जिला- बारां(राजस्थान)
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