जिंदगी के कुछ पन्ने खुलने अभी बाकी है,
उसके ऊपर सिर्फ हाथ फेरी है,
वो भी बड़ी मासूमियत से पूछती है,
फिर मिलोगे ना!!!
ऐ मेरी प्यारी ज़िंदगी!!!
कुछ पल की माया जाल में इस तरह बंध गई थी,
की कहीं न कहीं तुझे जीना भूल गई थी,
हंसना,रोना लगा रहा ज़िंदगी में,
पर मेरे लिए तू कितनी जरूरी है,
ये भूल गई थी,
वक्त की धारा में मैं भले ही आगे जा चुकी हूं,
फिर भी वो पहली जिंदगी पाने को तरस जाती हूं,
जब कभी रात में खुद को बहुत अकेला पाती हूं,
जिंदगी से पूछती हूं, तुम फिर मिलोगे ना??
इस दुनिया से दूर, खुद की एक दुनिया हो,
उस दुनिया में मैं और मेरी जिंदगी साथ हो,
मेरी खुद की एक पहचान हो,
साथ में कागज के कुछ पन्ने और एक कलम हो,
बोलो ना ज़िंदगी, तुम फिर मिलोगे ना,
तुम्हे मैं गले लगाना चाहती हूं,
जी भर के जीना चाहती हूं,
कुछ तुमसे सीख कर, कुछ तुम्हे देना चाहती हूं,
वक्त के सिरहाने आ कर, क्या कुछ नहीं देखा है,
एक ही पल में हस कर दूसरे ही पल में मरना भी पड़ा है,
सुकून तो जैसे हवा की तरह गुज़र जाता है पास से,
हम सिर्फ बैठे बैठे हमारी जिंदगी को ढूंढ रहे हैं,
जिंदगी बिना इस जान का क्या ही करे,
दिल में खुशी ही न हो तो, हस कर क्या ही करे,
लगता है ये ज़िंदगी रूठी हुई है,
उसे अब मनाए या कुछ और ही करे,
घुटन भरी इस दुनिया से निकल कर,
ए जिंदगी!!! तुझे पाना चाहती हूं,
तेरे भरोसे अब जीना चाहती हूं,
पता है की नाराज़ है मुझसे,
फिर भी पूछती हूं,
तुम फिर मिलोगे ना मुझे???
बता ज़िंदगी, तू फिर मिलेगी न मुझे,
तेरे साथ जीना चाहती हूं,
आखरी बार एक और मौका देगी ना मुझे???
बता ज़िंदगी , तू फिर मिलेगी न मुझे???
© ज्योतिजयीता महापात्र
ओडिशा