पंकज ओए पंकज , जल्दी से मेरे पास आओ, देखो तो मेरे पीछे कुछ धमाका हुआ है । जल्दी आओ यार जल्दी आओ पंकज । पसीने से लथपथ संजीव नींद में ही बड़बड़ाने लगता है उसकी पत्नी कविता जो पास में ही सोई थी अपने पति की हालत और बड़बड़ाना सुनकर डर जाती है । अपने डर पर काबू पाने के बाद कविता पहले तो कमरे की लाइट जलाती है फिर अपने पति संजीव को हाथ पकड़कर हिलाती है और संजीव को जगाने की कोशिश करती है । कविता के जगाने से संजीव की आंखें खुलती हैं कुछ देर तक तो उसे समझने में लग जाते है कि वो वास्तव में कहां पर है ?। संजीव जगने के बाद जब उठकर बैठता है तब कविता को संजीव की आंखों में भय दिखाई देता है । अभी भी संजीव का पूरा शरीर उस स्वप्न की वजह से कांप रहा है जो स्वप्न वो देख रहा था । वास्तव में वह स्वप्न नहीं हकीकत थी जो उसके दिलो-दिमाग पर इस तरह हावी हो गई थी कि वो स्वप्न के रूप में उसे परेशान करती थी । संजीव कुछ देर बाद नार्मल हो गया क्योंकि वो जानता था कि यह स्वप्न नहीं बल्कि वही हकीकत हैं जो उसके साथ पांच साल पहले घटित हुई थी । इन पांच सालों में उसने इस बात को भूलने की तमाम कोशिशें की लेकिन वो भूल नहीं पाया । अभी पिछले हफ्ते ही तो उसकी शादी कविता से हुई है । शादी की भागदौड़ में और हंसी मजाक के बीच वो इस बात को लगभग भूल गया था लेकिन आज इस तरह से फिर उसे वहीं हकीकत स्वप्न के रूप में दिखाई दी जो वह पिछले पांच सालों से सह रहा था फर्क बस इतना था कि पहले नींद में चिल्लाने से पंकज जो उसके कमरे में और ड्यूटी में भी उसका साथी था वो दौड़ कर आता था आज उसकी जगह कविता थी । कविता अपने पति की हालत देखकर पहले तो खुद ही डर गई थी लेकिन अब उसे संजीव पर प्यार आ रहा था क्योंकि संजीव ने एक छोटे बच्चे की तरह कविता का हाथ पकड़कर रखा था । कविता ने संजीव को जब रिलैक्स देखा तो पूछा कि ऐसा आपके साथ कब से हो रहा है?? संजीव पहले कुछ देर तक तो मौन रहा उसके बाद उसने कविता को जो। बातें बताई वो इस प्रकार है _ संजीव और पंकज जो भारतीय सेना में सैनिक थे उनकी ड्यूटी बार्डर के इलाके में 3 बजे से लेकर 6 बजे तक की थी । दोनों पक्के दोस्त थे और हमउम्र होने के कारण उनके बीच हंसी – मजाक भी होती रहती थी । दोनों की अभी तक शादी भी नहीं हुई थी । दोनों की रात की ड्यूटी का वक्त भी एक ही था। दोनों अपने – अपने पोस्ट पर पहुंच गए और उन्होंने एक – दूसरे को फोन किया जैसा कि वे दोनों हमेशा करते थे । फोन कटने के बाद दोनों अपने – अपने क्षेत्र में राउंड लगाने लगे। एक घंटा बीतने के बाद संजीव ने अपने फोन में गाना लगा लिया और सुनने लगा साथ ही वो राउंड भी लगा रहा था । उसकी नजर चारों तरफ थी वो भारतीय सेना का वीर और जांबाज सिपाही था जिसे अपनी ड्यूटी ईमानदारी से करनी आती थी । ये एरिया था भी खतरनाक क्योंकि यहां दूसरी तरफ से गोलीबारी होती ही रहती थी । इसकारण यहां ड्यूटी करने वाले बड़ी ही सजगता के साथ ड्यूटी करते थे । संजीव को भी अपनी ड्यूटी की जिम्मेदारियों का बखूबी ज्ञान था और ड्यूटी पर तैनात सिपाहियों के लिए क्या खूब कहा गया है ” उस देश की सरहद को कोई छू नहीं सकता , जिस देश की सरहद की निगहबान है आंखें ” हमारी सेना के वीर और जांबाज सैनिक देश की रक्षा के लिए अपने प्राणो तक का बलिदान करने में पीछे नहीं रहते । इसी जज्बे के साथ संजीव और पंकज भी वीर और जांबाज सैनिक की तरह सरहद पर डटे हुए थे। राउंड लगाते- लगाते संजीव ने अपनी कलाई घड़ी पर नज़र डाली 5:30 हो गए थे । सर्दियों की रात थी इस कारण अभी भी अंधेरा ही था । संजीव राउंड लगाने के लिए आगे बढ़ने ही वाला था कि उसके कनपटी के पास से होती हुई एक ग्रेनेड उसके पीछे कुछ दूरी पर जाकर फटा । ये सब इतनी जल्दी में हुआ कि जब तक संजीव कुछ समझ पाता तब तक धमाका हो चुका था और इस धमाके को संजीव की आंखों ने इतने पास से ग्रेनेड को जाते देखा था कि एक पल को तो उसे लगा कि मैं गया । मैं अब जीवित नहीं बच पाऊंगा और वो भागते हुए पंकज को बुलाने लगा। भगवान का शुक्र था कि संजीव बाल – बाल बचा था लेकिन उस दिन संजीव ने मौत को अपनी आंखों से देखा था और यही हकीकत उसके दिलो-दिमाग में इस कदर बैठ गई थी कि आज तक वो इससे उबर नहीं पाया था।
कविता ने सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनी और मुस्कुराते हुए प्यार से संजीव का हाथ पकड़कर उसे बिस्तर पर सुला दिया और मन ही मन में यह सोच कर मुस्कुरा उठी कि इनके इस रोग को मैं एक मनोचिकित्सक की मदद से एक दिन अवश्य दूर कर पाऊंगी और फिर से ये हमारे देश के निगहबान बनकर अपने फर्ज को बखूबी अंजाम देंगे।
” जय हिन्द “🙏🏻🙏🏻
” गुॅंजन कमल ” 💓💞💗