बाहर बारिश थी .. अनवरत झम झमा झम ..!
ऊपर टीन की छत पर बारिश का शोर , टपर -टपर की आवाजें होती ..! मन बारिश में  गाना गुनगुनाने लगा और उसने टेबल पर पड़ी डायरी उठा ली ..! नेह भर रहे थे बारिश के साथ ..! वह कुर्सी पर  बैठी और कुछ पढ़ने बैठ गई ..! वह पढ़ने लगी ..
सुनो मन..!
कितने दिनों से सोचती थी तुम इस बार आओगे ..? इस बार तो मेरे संग समय बिताओगे बहुत लम्बे दिनों तक तुम्हें छुट्टी नहीं मिली ..और जो बेला का पेड़ जो तुम लाए थे ना वह मुरझाने लगा है क्योंकि हमारे प्यार की खुशबू उड़ रही धीरे धीरे .!  मुझे लगता था इस बरस तो आ जाओगे ..! हमेशा की तरह एक सरप्राइज देने की तुम्हारी जो आदत है .. इस बार क्या सरप्राइज देने वाले हो ..?
उधर  तुम्हारी मां भी परेशान थी कि,तुम विवाह की तारीख पक्की करके अपने कर्तव्य की खातिर , ड्यूटी तैनाती पर चले गए हो ..! 
पता नहीं बरसात का रिश्ता भी ऐसा है जिंदगी से जो भीगा देता है अंदर की अनचाही संवेदना भी हिलोरे मारती हैं.! जब भी वर्षा होती है तुम बालों को पोंछते हुए, मुस्कान चेहरे में लिए दिख जाते हो ..! तुम पुरुष हो ..अपने कर्तव्य की राहों पर मुझे भूल सकते हो ..! परंतु मेरा कर्तव्य तो तुम हो तुमको कैसे भुला सकती हूं मैं ..! तुम्हारे लिए देश सेवा सर्वोपरि  हो सकती है और मेरे लिए तुम्हारी सेवा ही सब कुछ है सब कुछ ..!
मैं तुम्हारी पत्नी बनकर तुम्हारे घर को अपनी खुशबू से महका दूंगीं ..!
ओहह …अब नहीं ..और इंतजार नहीं.. हो सकता है बस..! पता चला है कि, तुमको द्रास सेक्टर में नियंत्रण रेखा की ओर जाना पड़ रहा है वहां पर तनाव बढ़ गया है ,इस पल ऐसा लग रहा है जैसे हाथ से सब निकल रहा है तुम भी …मेरा वहम ही हो शायद . ईश्वर करे ..!
तभी : बाहर ;
बत्ती गुल हो गई ..
और उधर बरसात भरने लगी नदी नाले पर लबा -लब भर ग‌ए ..! चारों ओर घुप अंधेरा ..! 
उसने डायरी बंद की तभी गेट पर आवाजें..! 
बारिश के रूकने का नाम नहीं था ..!  वहां टॉर्च की रौशनी में देखा … आर्मी की बड़ी गाड़ी थी ,उसके अंदर तिरंगे से लिपटा एक पार्थिव शरीर था …वह अन्दर से कांप गई ..! वह “मन”था ..! उसके सपने चूर- चूर हो ग‌ए .! 
कुछ दिन के लिए स्नेहा को मन की मान ने अपने पास विवाह की तैयारियों के लिए बुला लिया था ..! मन अभी लेफ्टिनेंट के पद पर था ,इतनी उम्र में देश का जज्बा कूट -कूट के भरा था ..!
जय -जय -जय के नारों से उस सैनिख का घर गूंज रहा था ..! हिम्मत कर आगे बढ़ी और एक सलामी दे दी सैनिक के नाम जो अभी चिर निद्रा में सोया हुआ था, अनंत यात्रा की ओर चला गया था ..!
बहते हुए आंसूओं को पी गई ..! उसके मुंह से निकला ,”तुम भी यही चाहते थे ना ..तुम चले जाओ और मैं रोऊं भी ना कभी ..! चले गए और बताया भी नहीं ..! भला ऐसा सरप्राइज भी कोई देता है ऐसे ..! ओहह ..! काश पीछे से आकर आंख बंद कर लेते ..!”
बहुत दिनों बाद:
फिर एक दिन वही बारिश वही रात वही डायरी जिसे लिखने वह फिर बैठ गई ..!
मन …!
जिस बारिश में पहली मुलाकात हुई थी ,आज वह अजनबी बन जाती तो अच्छा था ..! तुम एक कर्तव्यनिष्ठ सैनिक रहे, तुमसे मिलने की एक उम्मीद भी खत्म हो गई है .. अफसोस है मुझे ..यह बात हमेशा दिल में कसक देती रहेगी ,काश ! मैं भी देश के लिए कुछ कर पाती तुम्हारे बाद ..! एक सैनिक की पत्नी बनकर ..!
मन की बारिश से भीगा एक कोना डायरी के ऊपर लुढ़क गया ..! बारिश के अहसास सा ..! आज की बारिश के बाद कभी बारिश अच्छी ना लगी ..! बरस रही थी जो  झम- झमा झम .. जो एक कसक …रह गई उसकी ..डायरी के भीतर बंद होकर आज भी जिंदा अहसास सी ..!
सुनंदा 🇮🇳..
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