एक समय की बात है
जब माता पिता की बात हर हालत में मान्य होती थी
जब गुरुजनों की समाज में खास अहमियत होती थी
एक चूल्हे पर पूरे परिवार का खाना बनता था
नन्हा मेहमान तो पड़ोस में ही पलता बढ़ता था
घर आया मेहमान पूरे मौहल्ले का मेहमान होता था
उसकी आवभगत में हर कोई पलक बिछाये रखता था
एक दूसरे के दुख सुख महसूस किये जाते थे
बिना मतलब के भी लोग मिलने आया करते थे
मुंह पर मिठास और मन में कड़वाहट कम होती थी
पड़ोसी को खुश देखकर खुद को भी खुशी होती थी
मौहल्ले भर के बच्चे एक साथ खेला करते थे
लड़ भिड़ कर के फिर से एक हो जाया करते थे
पत्नी का मुंह पहली बार गौने पर ही दिखता था
कागज पे उतरे शब्दों में प्रियतम का चेहरा दिखता था
धन से कंगाल पर मन से अमीर सब लोग हुआ करते थे
एक समय की बात है, कभी ऐसे भी दिन हुआ करते थे
हरिशंकर गोयल “हरि”