दिन भर कागज और कलम लेकर ना जाने क्या – क्या लिखते रहते हैं । यें कागज के पन्ने भी पैसों में भी  मिलते हैं कोई मुफ्त में देकर हमें नहीं जाता है । देखिए जी ! अब  यह नहीं चलेगा । बाहर जाकर कोई काम – धाम कीजिए जिससे कि घर चल  सकें ।  आपको मालूम भी है यह घर – गृहस्थी किस तरह से चलाई जाती है ? दो वक्त की रोटी खाने के लिए पैसों की जरूरत होती है । बेटा भी बड़ा हो रहा है उसे पढ़ाना है लिखाना है लेकिन आप तो है बस इन्हीं कागजों में लगे रहते हैं । आप यह मत समझिए कि  मैं आपको ताना दे रही हूॅं ।  एक सच्चाई बता रही हूॅं  यह लेखक बनने का भूत अपने सिर पर से उतार  दीजिए ।  किरण ने अपने पति सुनील के पास कुर्सी पर बैठते हुए उससे कहा । 
तुमने देखा था ना कि पिछले महीने ही मेरे द्वारा लिखी  कहानियां और कविताएं अखबार में छपी थी इसके लिए मुझे कुछ पैसे भी मिले थे । सुनील ने अपनी पत्नी किरण की तरफ देखते हुए कहा । 
उन पैसों से क्या हमारा घर चल गया ? अगर मैं प्राइवेट नौकरी ना करती रहती तो ना जाने हमारा यह  घर कैसे चलता ? अभी भी आपके पास समय है। आप कोई प्राइवेट नौकरी ढूंढ लीजिए ।  हम दोनों ही  काम  करेंगे तो हम अपने बच्चे की अच्छी तरह से परवरिश भी कर सकेंगे और हमारा  जीवन खुशहाल भी होगा । किरण ने सुनील के हाथ को पकड़ते हुए कहा ।
तुम जानती हो ना तो मेरा क्या सपना है ? मैं एक लेखक  हूॅं  और मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है कि हर  लेखक का सपना होता है कि साहित्य जगत में वह अपने लिए  एक खास पहचान बनाएं ।  मैं मानता हूॅं  कि भले ही इसके लिए मुझे  पैसे नहीं मिलते ।  मैं जितनी मेहनत करता हूॅं मुझे इसके लिए इससे अधिक पैसे मिलने चाहिए थे जो मुझे नहीं मिल पाते हैं लेकिन मुझे उम्मीद है कि एक – न –  एक दिन मेरे जीवन में ऐसा दिन जरूर आएगा जब मैं सभी लेखकों  के बीच में अपनी एक खास पहचान बनाऊंगा । मेरी जिंदगी में वह दिन  अवश्य आएगा ।  मुझे उसी  दिन का  इंतजार है और वह  दिन आने तक  मैं तुम्हारा साथ चाहता हूॅं ।  बोलो ! तुम  मेरा साथ दोगी ना ? सुनील ने  अपना हाथ किरण के हाथ के ऊपर रखते हुए कहा । 
पिछले चार  साल से मैं आपका साथ ही  दे रही हूॅं । जब तक आपके सर से यह लेखक बनने का भूत उतर नहीं जाता है मैं अब आपके साथ नहीं रहूंगी ।  मैं अपने बेटे कार्तिक को लेकर अपने मायके जा रही हूॅं और आप मुझे बुलाने तभी आना जब आप यह निर्णय  लें चुके हो कि आपको लेखक नहीं बनना है । किरण ने अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से में सुनील से कहा  ।
किरण … सुनो  तो मेरी बात । यह मेरे बचपन का सपना है अगर मैं इस सपने को नहीं पूरा कर पाया तो मैं जीते जी मर जाऊंगा । करने को तो  मैं कोई भी नौकरी कर लूं लेकिन उसमें मेरा मन नहीं लगेगा और मन से ना किया गया कार्य मन में असंतोष पैदा करता है । मुझे कुछ और वक्त दें दो ।  अगर मैं तय किए हुए वक्त में लेखक नहीं बन पाया तो तुम जो कहोगी वह मैं करूंगा ।  सुनील द्वारा कहे हुए शब्द सुनकर किरण के पैर रुक गए और उसने गुस्से में पलट कर जवाब दिया :- मुझे आपको जो वक्त देना था वह मैंने शादी से पहले ही आपको दे दिया । आप अगर भूल गए हैं तो आपको याद दिला दूं  कि हमारी आपस में यह बात हुई थी कि तीन  साल तक अगर आप लेखन क्षेत्र में कुछ ना कर सके तो फिर जैसा मैं कहूंगी  वैसा आपको करना होगा । मैंने आपको तीन की बजाय चार  साल दे दिए  लेकिन आप इन चार  सालों में वह मुकाम हासिल ना कर पाए जिसकी  आपने मुझे उम्मीद दिलाई थी । आज मुझे पछतावा हो रहा है कि मैंने किस  इंसान से प्यार किया ।  मैंने भी आपके लिए बहुत कुछ छोड़ा है । अपने  अनेकों ख्वाहिशों की आहुतियां  दी है मैंने । जबसे आपके घर में आई हूॅं एक – एक पैसे के लिए मुझे तरसना पड़ता है । भगवान का शुक्र है कि मेरे घरवाले अभी भी मुझे अपनाने के लिए तैयार है । मैं उन्हीं के  पास जा रही हूॅं । ठंडे दिमाग से मेरी बात सोचिएगा और  जब  बात आपकी समझ में आ जाए तब मुझे लेने आ जाएगा । 
दस  मिनट के अंदर में किरण  ने अपना और अपने बेटे कार्तिक का सामान बैग में रखा और सुनील के  घर से  निकल पड़ी । सुनील उसे रोकता ही  रह गया लेकिन वह मानी  नहीं । अपने बेटे का हाथ पकड़कर किरण अपने घर के सामने दूसरी तरफ जाने के लिए  रोड पार करने  लगी । उसने रोड पार कर भी लिया और एक तरफ खड़ी होकर ऑटो  का इंतजार करने लगी । किरण उस समय बहुत गुस्से में थी ।  रोड के उस पार घर के गेट पर खड़े  अपने पति की तरफ वह  देख भी नहीं रही थी । बेवस खड़ा  सुनील अपनी पत्नी  किरण और अपने बेटे कार्तिक को देख रहा था तभी उसने देखा कि एक असंतुलित कार किरण और उसके बेटे की तरफ बढ़ रहीं हैं । वह चिल्लाने लगा लेकिन किरण तो उसकी तरफ देख ही  नहीं रही थी ।  उसने दूसरी तरफ अपना मुंह फेर लिया । सुनील जब तक उसके  पास पहुंचता वह कार  उन दोनों को रौंदते  हुए आगे बढ़ चुकी थी । 
कुछ देर में ही क्या से क्या हो गया था । सुनील तो  अपना मानसिक संतुलन ही  खो चुका था । उसके सामने रोड पर उसकी पत्नी किरण और बेटा कार्तिक खून से लथपथ पड़े थे । लोगों की भीड़ ने ही पुलिस को फोन कर बुलाया सुनील तो अपनी सुध-बुध खोकर वहीं रोड पर ही बैठा था । उसकी दुनिया ही लुट चुकी थी । 
पड़ोस के लोगों ने ही उसे उसके घर पहुंचाया । पोस्टमार्टम के बाद जब उसे उसकी पत्नी और बेटे की लाश को सौंपा गया वह दहाड़े  मार  कर  रोने लगा । पड़ोसियों ने ही अंत्येष्टि संस्कार करने में उसकी मदद की । सुनील के दिमाग में बार – बार यही आ रहा था कि मेरी वजह से ही इन दोनों की जान गई है । वह किरण की  तस्वीर के सामने खड़ा होकर घंटों रोता रहता । किरण के घर वाले भी अपनी बेटी की मौत के लिए उसे ही जिम्मेदार मान रहे थे उन्होंने उसे पुलिस केस में फंसाने का भी प्रयत्न किया लेकिन  उसके खिलाफ कोई सबूत ना होने की वजह से उसे बरी कर दिया गया । उनके द्वारा उसके  लेखक बनने के सपने और उसकी  लेखनी  का मजाक उड़ाया जाता लेकिन वह  कुछ बोलता नहीं ।
छः  महीने बाद एक दिन  किरण का बड़ा भाई जब सुनील को खरी-खोटी सुना रहा था  उसका  दोस्त रवि वहां पहुंचा । एक सच्चा दोस्त ही सच्चे दोस्त की मदद करता है रवि भी अपने दोस्त सुनील की हालत देखकर बहुत परेशान था मैं तब तक वहां से नहीं गया जब तक कि  किरण का बड़ा भाई वहां से चला नहीं गया । किरण के बड़े भाई द्वारा कही जा रही  बातों  का उसने विरोध  करना चाहा  लेकिन सुनील ने उसे  चुप रहने का इशारा किया जिसके बाद वह चुप हो गया । उस दिन अपने दोस्त रवि  के  बहुत समझाने के बाद सुनील ने फिर से अपने सपने की तरफ कदम बढ़ाने शुरू कर दिए । 
२  साल बाद एक लेखक के सपने की कीमत नामक किताब ने साहित्य जगत और लेखनी के क्षेत्र में इतनी लोकप्रियता पाई कि  उस किताब की  हजारों प्रतियां एक दिन मे ही  बिकने लगी । अपनी ऑटो बायोग्राफी में सुनील ने अपने जीवन चरित्र को इस तरीके से  दर्शाया था जिसे पढ़ते ही  पाठक  रों  पड़ते थे । किताब में लिखें शब्दों  की चयन प्रक्रिया  ऐसी  थी जिसे  पढ़ने वाले प्रत्येक  पाठक को यह  अपना ही जीवन चरित्र  लग रहा था । इस किताब की लोकप्रियता देखते ही साहित्य जगत की तरफ से उसे  सम्मानित करने का निर्णय लिया गया । 
सुनील उस स्थल  पर  गया जहां उसे  सम्मानित किया जाना था लेकिन उसने  पुरस्कार लेने से मना कर दिया । इस पुरस्कार को पाने से पहले मैंने बहुत कुछ खोया है तब जाकर यह पुरस्कार मेरे पास आई है और आज मैं गर्व से कह सकता हूॅं  कि एक लेखक का सपना पूरा हुआ है लेकिन इस लेखक ने  अपने सपने पूरे करने के लिए इसकी कीमत भी चुकाई है । इस पुरस्कार को मैं अपनी पत्नी और बेटे को देना चाहता था इसलिए इस  पुरस्कार को  मैं कैसे ले सकता हूॅं ।  मैं इसका हकदार नहीं ।  कहते हुए सुनील मंच से उतरकर अपने लिए इकट्ठी भीड़ को चीरते हुए वहां से निकल गया । 
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                                                धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💓💞💗
  
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