एक नादान है परेशान
उठाए बोझ किताबों का
बचपन जीएं भरपुर
या ले ले किताबी ज्ञान
खेल खिलौने भूल गए
मस्ती के जमाने भूल गए
याद रहा न एक व्याख्यान
हर पल खोफ़ का मंजर
कभी आगे निकलने का
कभी पीछे न रहने का डर
छोटा सा दिमाग़ भरे बवंडर
हमनें अपना नाम कमाया
बचपन का भरपूर आनंद उठाया
व्यवहार से बड़ों ने सिखाया
अब चाहें बच्चे बन जाए कमांडर
रख रख बोझ कमर झुकाई
दिन में चैन ना रात में नींद आई
सपने हो गए धूमिल सारे बच्चों के
पसीने छुड़ाए अच्छे अच्छों के
मोबाइल ने रही कसर पूरी की
आंखो पे आंखो की सफ़ाई की
चार दिवारी बना अब जहान सारा
एक डिब्बे में बंद बचपन आवारा …..
एक डिब्बे में बंद बचपन आवारा …..
©रेणु सिंह ” राधे ” ✍️
कोटा राजस्थान