गतांक से आगे

मानवेंद्र ने पूरे इलाके में माधव की तलाश की लेकिन वो इतना शातिर दिमाग का था कि वो भागने की बजाय पास के घने जंगल में जाकर छुप गया और संयोगिता को बांध कर एक कोने में फेंक दिया।वो गाड़ी उसने एक खंडहर में छुपा दी। मानवेंद्र के आदमियों और पुलिस ने उन्हें आसपास ढूंढने की बजाय सीधे उसके गांव जाने का निश्चय किया क्योंकि उन्हें विश्वास था कि माधव संयोगिता को लेकर सीधे अपने गांव ही गया होगा। लेकिन वहां जाकर उन्हें निराशा ही हाथ लगी।और जब वो लोग अपने इलाके में उसे तलाशने लगे तब तक माधव संयोगिता को लेकर रात के घटाघोप अंधेरे में ही उस जगह से बहुत दूर जा रहा था । लेकिन शायद दुर्भाग्य उन दोनों के ऊपर मंडरा रहा था।एक घने जंगल को पार करते ही एक गोली सीधे माधव के सीने में आकर लगी और वो वहीं ढेर हो गया। संयोगिता डर के मारे बेहोश हो गई ।
जब उसे होश आया तो वह एक अनजान जगह अंजान कमरे में अंजान लोगों के बीच एक मखमली बिस्तर पर लेटी हुई थी। वो चौंक कर उठकर बैठ गई। उसने अपने चारों तरफ देखा ना तो उसे माधव सिंह दिखाई दिया और ना ही मानवेंद्र।वो कहां थी?  कौन थे ये लोग ? उसे कुछ भी पता नहीं था। वो हक्का बक्का होकर उस कमरे में मौजूद सारे लोगों को देख रही थी। तभी एक कड़कती हुई आवाज आई
लड़की को होश आ गया? 
हां मालिक। किसी ने बड़ी विनम्रता से कहा।
अच्छा, कैसी है वो?
पहले से काफी बेहतर है मालिक।
ठीक है ,उसके लिए तुम कुछ नाश्ता लेकर आओ। थोड़ा दूध फल आदि।
उसके बाद उस व्यक्ति ने उसे नाश्ता कराया , संयोगिता की बिलकुल इच्छा नहीं थी लेकिन उसने भयवश नाश्ता कर लिया। क्योंकि उस व्यक्ति की आंखों में कुछ ऐसा था जिससे वो भयभीत हो गई थी।
“हमें अपने घर जाना है, हम कहां है ? कृपा करके हमें हमारे भाई सा और दादी सा के पास  पहुंचा दीजिए । “
“तुम यहां से कहीं नहीं जा सकती तुम तो हमारे लिए एक खूबसूरत खिलौना हो।” उस व्यक्ति के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कान थी। संयोगिता को विश्वास हो गया कि वो कुएं से निकल कर खाई में गिर गई है । जहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं है । उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे।
“ऐ लड़की, ये आंसू बहाना बंद कर। तुझे यहां कोई तकलीफ नहीं होगी।बस तू यहां से कहीं बाहर नहीं जा सकती।तू इतनी सुंदर है बस तुझे एक महीने तक  रोज  अपनी सुन्दरता का हम सबको कराना होगा। इसके बाद तू आजाद है । हम सबके लिए तू  तब बेकार हो जायेगी।”
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संयोगिता ने उनका बहुत विरोध किया, भूखी रही, बेंत की मार खाई, लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा।उसके ऊपर जुल्म और बढ़ा दिया गया। उस घर में चार पुरुष थे।और कोई भी स्त्री नहीं थी।उन चारों भाई एक शिकार को फंसाकर ले आते थे और उसके साथ निर्ममता का व्यवहार करते थे बारी बारी से सब अपनी वासना की आग बुझाते थे।और जब उनका मन भर जाता था तो वह उसे ले जाकर फिर किसी जंगल में या सड़क किनारे छोड़ देते थे। वह लड़की इस योग्य नहीं रह जाती थी कि उनका विरोध कर पाती। वो या फिर मर जाती या फिर किसी गलत धंधे में उतर जाती।
संयोगिता के साथ भी यही हुआ, एक महीने तक उसके शरीर के साथ खिलौने की तरह खेला गया उसे यातनाएं दी गई। और जब इंतहा हो गई । जुल्मों की सीमा समाप्त हो गई तो उसकी आंखों में पट्टी बांध कर वहीं ले जाकर छोड़ दिया जहां से उसे उठाकर लाया गया था।वो अब एक जिंदा लाश थी उसकी सारी भावनाएं मर चुकी थी। वो पूरी रात जख्मों से नीले पड़े शरीर के साथ जंगल में पड़ी रही और भगवान से प्रार्थना करती रही कि कोई जंगली जानवर उसे अपना भोजन बना ले। लेकिन शायद भगवान को अभी उसकी और परीक्षा लेनी थी इसलिए कोई भी उसके पास नहीं फटका। सुबह जंगल में लकड़ियां लेने आई आदिवासी महिलाओं ने उसे इस हालत में देखा तो उसे सबकी मदद से उठाकर अपनी झोपड़ियों के पास ले आई। जड़ी बूटियों के लेप से उसके जख्मों को ठीक किया। शुरू के दिनों में संयोगिता ना कुछ बोलती थी ना हंसती थी।वो हमेशा पत्थर की तरह बुत बनकर बैठी रहती थी। आदिवासी महिलाएं उसे हंसाने का बहुत प्रयास करती थी जब वो लोग सारे दिन के परिश्रम से थककर शाम को ढोलक की थाप पर शराब पीकर उन्मत्त होते और आदिवासी लोकनृत्य करते तो वह एक कोने में बैठकर चुपचाप देखती रहती।  धीरे धीरे उसने उनके कामों में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। जब सारी आदिवासी महिलाएं जंगल चली जाती तो वह सबके छोटे छोटे बच्चों को संभालती और पढ़ने की उम्र वाले बच्चों को अक्षरज्ञान कराती। बच्चे धीरे धीरे उससे हिल मिल गए थे।समय के साथ वो धीरे धीरे जीवन की ओर वापस आने लगी थी। धीरे धीरे एक साल बीत गया।लेकिन पता नहीं क्यों संयोगिता की तबियत खराब हो रही थी।
एक दिन उस आदिवासी बस्ती में सिस्टर मार्था अपनी टीम के साथ आई थी।उन्होंने आदिवासी बस्ती में एक बाहरी लड़की को देखा तो वो हैरान रह गई। जब उन्होंने उन आदिवासियों से बात की तो उन्होंने उसके यहां तक आने के बारे मे बताया। अपने चेहरे मोहरे से वो बहुत ही अच्छे खानदान की लग रही थी सिस्टर मार्था ने जब संयोगिता से उसके अतीत के विषय में जाना। तो उनकी आंखों में भी आंसू आ गए। इतनी कम उम्र में कितना कुछ सह चुकी है यह लड़की। उन्होंने संयोगिता से कहा कि वो तुम्हें अपने साथ ले जाना चाहती हैं । क्या उसे मंजूर है। संयोगिता ने उनके साथ जाना स्वीकार कर लिया। आदिवासियों ने संयोगिता को बिलकुल अपनी बेटी की तरह विदा किया बच्चे उसे छोड़ने को तैयार नहीं थे। बड़ी मुश्किल से संयोगिता ने उन्हें मनाया । संयोगिता को सिस्टर मार्था अपने घर ले गई  । उसे उन्होंने एक अच्छे अस्पताल में भर्ती कराया। जब संयोगिता की सारी जांचे हुई तो उसमें एक विस्फोटक खुलासा हुआ। डॉक्टर की टीम हैरान थी उस रिपोर्ट को देखकर।
क्या था उस रिपोर्ट में …
आइए जानते हैं अगले भाग में तब तक आप सभी ढूंढते रहिए
एक टुकड़ा धूप का
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