हर दिन तरोताजा हो जाए
बस एक कप चाय से
हर आदमी राजा हो जाए
बस एक कप चाय से
सारे गम काफूर हो जाए
एक कप चाय से
हर कोई मजबूर हो जाए
एक कप चाय से
हो गिले-शिकवे पुराने
कोई रूठे कोई माने
चुस्कियों से भर ही जाते
जख्म कितने हो पुराने
रंजिशें कितनी भी पालो
दोस्ती की आस रख लो
चाय के प्याले को साथी
बस जरा सा पास रख लो
साथ में बिल बैठ लो
बस एक कप चाय पे
मर्ज हो कितना पुराना
बस दवा एक चाय पे
सारे रोगों की दवा
बस एक कप चाय पे
मांग लो कोई दुआ
बस एक कप चाय पे
चाय के प्याले में सपने
संजो लो जहान के
चाय से जलते हैं चूल्हे
कितने ही इंसान के
चाय से चलती है रोजी
नाम से बिकती है यह भी
बन गए कितने महल
बस एक कप चाय से
प्रीति मनीष दुबे
मण्डला मप्र