कभी मिलना हमसे  सुबह की चाय पर
बहुत कुछ कहना बहुत कुछ सुनाना है
तुम्हारे साथ चाय की सिप लेते लेते
 डूबते सूरज की लालिमा दिखाना है
एक पहाड़ी धूप का रंग
दूजे भाप से उडती खुशबू
बिना तक्कलुफ नाक को छू के
अपने आप तारीफ करवाती 
चाय का दूर दूर तक है परचम
अदरक दूध चीनी मिले अनुपम
मिलकर रहो और रखो ये सयंम
लेकिन अपना कब होगा संगम
करते हैं नारी शक्ति  हम नमन
चलो हमारे संग मिलाकर कदम
आज खेल करो तुम नहीं खत्म
एक कप चाय हो जाए गर्मा गर्म
नरम सुर्ख होटो से गर्म सुर्ख चाय
कि मस्त चुस्की और बैठ जाए चार यार
कटलेस, चाय समोसा मैं और तुम
बस जीने को और क्या चाहिए
रंजना झा
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