एक कप चाय की चाह कैसी होती है ?
क्या चिड़ियों की चहचहाट सी होती है ?
उन्मुक्त नील गगन के नीचे ,
बादलों के रुपहले टुकड़ों को जैसे ,
कैद करने की कोशिश में यूँ ही ,
वक्त मुट्ठी की रेत सा फिसल जाता है ।
चाय का लुत्फ़ कहाँ मिल पाता है ?
प्रातः तारों की छाँव में उठना ,
घर – रसोई के काम निबटाना ,
महानगर की रेलमपेल में ,
सूर्योदय के साथ घर से निकलना ,
निर्दिष्ट समय कार्य – स्थल पहुँचना ,
घर-बाहर की ज़िम्मेदारी ,
कप चाय का मेज पर ही छूट जाता है ।
चाय का लुत्फ़ कहाँ मिल पाता है ?
सेवा निवृत्ति के इन्तजार में ,
एक कप चाय की चाह में ,
चाह चाय की चाह ही रहती है ।
घर की जिम्मेदारियाँ वहीं की वहीं रहती हैं ।
बस कप पर लिपस्टिक का निशाँ छूट जाता है ।
कप चाय का मेज पर ही रह जाता है ।
कामकाजी महिलाओं को ,
एक कप चाय की चाह चाह ही रह जाती है ।
चैन का पल कहाँ नसीब हो पाता है ?
एक कप चाय का चैन से कब मिल पाता है ?
मीरा सक्सेना माध्वी
नई दिल्ली
स्वरचित एवं मौलिक ।