तुम्हें ये देश बुला रहा है,
तुम्हारे विचारों को संजो रहा है।
तुम्हें याद कर अब आंसु बहा रहा है।
राम रहीम के बंदे आपस में लड रहे हैं।
इन्हें फिर कोई ज्ञान देने आ जाओ न।
तुम्हें ये देश बुला रहा है,
अमन शान्ति का फिर पाठ पढ़ा जाओ न।
अब तो सिर्फ़ भष्ट नेताओं का राज है।
सुनते नहीं अब ये गरीबों की गुहार है।
किसान का जीवन अब बेहाल है।
फिर से देश को आबाद खुशहाल वतन बना जाओ न।
तुम्हें ये देश बुला रहा है,
एक बार फिर इस भुमी को धन्य कर जाओ न।
अंतर मन को चीरकर कविता लिखी असंख्य।
अब कविता दिन ब दिन विहीन हो रही है।
फिर पत्थरों में जान फूंक जाओ न।
फिर एक बार अटल विश्वास दिला जाओ न।
फिर कोई मधुर तान सुना जाओ न।
देश का परचम एक बार फिर से लहर जाओ न।
मानव ( नशा) भटक रहा अपनी राह है।
फिर कोई उपदेश मानव को दे जाओ न।
राजनीति में प्रखर जीवन जिया विश्वास को न कभी भी डीगने दिया।
अब तो चारों ओर आतंकवाद का मंजर हैं।
इन्हें अपनी गुज से दाहला जाओ न।
फिर मानवता का सबक सीखा जाओ न।
फिर कोई सुमधुर गीत सुना जाओ न।
फिर से कोई कविता सुना जाओ न।
देश को एक नई राह दिखा जाओ न।
फिर वही अटल विश्वास जगा जाओ न।
देश करे नीत उन्नति ऐसा बना जाओ न।
बहु बेटियां अब सुरक्षित नहीं है।
इन दानवों को कोई पाठ पढ़ाने आ जाओ न।
फिर उन्हीं सिध्दांतों को एक बार दोहरा जाओ न।
देश को फिर सोने की चिड़िया बना जाओ न।
फिर वही अटल विश्वास मानव में जगा जाओ न।
फिर भारत भूमि की नाक गर्व से ऊंचा कर जाओ न।
फिर से वही आदर सम्मान दिला जाओ न।
मानव को वही हौसला फिर दिला जाओ न।
अटल जी इस भूमि को फिर से धन्य कर जाओ न।
शत शत नमन है ऐसे वीर सपूत को ,
जिसने देश की उन्नति में अपना योगदान दिया।
स्वरचित अप्रकाशित मौलिक
कुमारी गुड़िया गौतम ( जलगांव) महाराष्ट्र