उसने…

आखिरी खत में लिखा था
“तूं बेबजह ही 
मेरे लिए अल्फाजों से लड़ा था,
वो कोरा कागज़ 
जो तूने मुझे भेजा….
मैंने वो भी पढ़ा था
तमाम सिसकियां जो
कागज की सिलवटों में थी
तमाम दर्द 
जो हाशिये पर पड़ा था।
मैने वो भी पढ़ा था। 
एक पड़ाव 
जिसने रास्ते बदल दिए
एक सफ़र 
जो वहीं पर खत्म हुआ
जहां राह में वो साया 
रोता हुआ खड़ा था।।
“तूं बेबजह ही 
मेरे लिए अल्फाजों से लड़ा था,
वो कोरा कागज़ 
जो तूने मुझे भेजा….
मैंने वो भी पढ़ा था
डॉo अजीत खरे
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