साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु प्रदत्त विषय

उल्टी गंगा बहाना

गीत

देखो चाल समय की, उल्टी गंगा बहा रहा है।

बेईमानी से,धन कमाया तो पैसे वाला कहा रहा है।

1 कलयुग को दोष देते, कहते है,युग बुरा है।

जो भी बना है सेवक, वो पैसे रहा चुरा है।

टेक अब सरमन ही, मां पिता को,ठोकर लगा रहा है0..…….

2 जिस पर किया भरोसा, उसने भरोसा तोड़ा।

जिसके लिए सब छोड़ा, अब उसने भी हमको छोड़ा।

टेक किसी और के अहित को,नर पूजाकरा रहा है 0……

3 जिंदा में मां पिता को,खाना नहीं खिलाया।

मरते रहे प्यासे, पर पानी नहीं पिलाया।

टेक कौवा को पिता कहकर पानी,खाना खिला रहा है 0……..

4 अब बारात लेकर, दुल्हन ही घर से जाती।

लड़की के पक्षवाले,अब तो बन रहे बराती।

टेक किंतु दहेज दानव, दुल्हन को खा रहा है 0………….

5 भूले सभ्यता संस्कृति,संग हरि का आराधन।

हलो हाय,अपनाये, मोबाइल में रमा मन।

टेक बलराम आज र्निबल, अब होता जा रहा है 0……

देखो चाल समय की, उल्टी गंगा बहा रहा है 0….

बलराम यादव देवरा छतरपुर

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One thought on “उल्टी गंगा बहाना”
  1. बहुत सुंदर आदरणीय जी।

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