उम्र के इस पड़ाव पर दिल तो हो जाता है बच्चा जी
कुछ कर पाने की ना रहती ताकत,सीखने मे भी रह जाता कच्चा जी!
छोटे बच्चे की तरह बच्चा बन जाने को मन ललचाए,
टाॅफी की जगह दो बोल मीठे सुन कर मन खुश हो जाए!
रुपया पैसा चाहे नही,बस चाहे एक  व्यवहार अच्छा जी!
झूठी करे नोक-झोंक हमसफ़र से,पर करे प्यार सच्चा जी!
चटपटे खाने को भी तरसते, क्यूंकि शरीर को अब ये सब नही पचता जी,
नाती पोतो के बीच मे खुशियां ढूंढे,तन्हा मन अब कही नही लगता जी!
बालो मे भी अब आ गई सफेदी,झुर्रिया भी अब छिपती नही,
बचपन छूटा गुजरी जवानी,ये ही एक बुढ़ापा जो कि आकर जाता नही!
अनुभव से बाल पक गए सभी,हकीकत को नही दे सकते गच्चा जी,
समय आखिरी है सोच कर अब मन  नही करते कच्चा जी!
उम्र के आखिरी पड़ाव का अहसास ये सच्चा जी!
                                                श्वेता अरोड़ा
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *