कैसे होते हैं ना यह उम्र बिताए हुए उम्रदराज लोग ।
कुछ हसंते से कुछ रोते से 
कुछ पाते से कुछ खोते से ,
कुछ अपनों से बतियाते हैं
 कुछ अपनों से ही दूर नजर आते हैं।
 कैसे होते हैं ना यह उम्र बिताए हुए उम्र दराज लोग।
कुछ मोह माया में हर पल है मगन 
कुछ प्रभु का करते हैं सिमरन,
 कुछ घर में पड़े रहते बेकार 
कुछ के हिस्से में नहीं है प्यार।
कैसे होते हैं ना यह उम्र बिताए हुए उम्र दराज लोग।
कुछ सब कुछ दे बैठे अपनों को 
कुछ ढूंढते टूटे सपनों को,
 कुछ पेंशन का करते इंतजार 
कुछ के जीवन में छाई बहार।
कैसे होते हैं ना यह उम्र बिताए हुए उम्रदराज लोग।
कुछ रिश्तो से छल पाते हैं
 कुछ ना आते हैं ना जाते हैं 
जिनको माना जीवन अपना 
वही नजरें अब चुराते हैं ।
कैसे होते हैं ना यह उम्र बिताए हुए उम्र दराज लोग।
जीवन में संध्या आएगी 
शायद रंगना बिखेर पाएगी ,
खुद को कर लो तुम खुद तैयार
 किसी का क्यों देखो इंतजार।
 कैसे होते हैं ना यह उम्रबिताए हुए उम्र दराज लोग।
खुद ही जीवन बिताना है
अंत का नहीं ठिकाना है ,
बस जेब सेहत ना खाली हो 
किसी की भी ना जिम्मेदारी हो।
कैसे होते हैं ना ही उम्र बिताए हुए उम्र दराज लोग।
तब कोई ना कह पाएगा
 उमरों को तो आना ही है ,
मरने से पहले क्यों कर मरें
 जब खुद ही खुद का बोझ उठाना है।
अच्छे होते है उम्र बिताए हुए उम्र दराज लोग।
स्वरचित सीमा कौशल यमुनानगर हरियाणा
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