ठाकुर विक्रम सिंह के दो बेटे थे। – अनुक्रम और पराक्रम।
एक बार दोनों बेटे जंगल में घूमने-फिरने, मस्ती करने के इरादे से गए। रास्ते में एक विशाल नदी थी। दोनों का मन हुआ कि क्यों न नदी में नहाया जाये।
यही सोचकर दोनों भाई नदी में नहाने चल दिए। लेकिन नदी उनकी उम्मीद से कहीं अधिक गहरी थी।
पराक्रम तैरते तैरते थोड़ा दूर निकल गया, अभी थोड़ा तैरना शुरू ही किया था कि एक तेज लहर आई और पराक्रम को दूर तक अपने साथ ले गयी।
पराक्रम डर से अपनी सुध बुध खो बैठा गहरे पानी में उससे तैरा नहीं जा रहा था अब वो डूबने लगा था।
अपने भाई को बुरी तरह फँसा देख के अनुक्रम जल्दी से नदी से बाहर निकला और एक लकड़ी का बड़ा लट्ठा लिया और अपने भाई पराक्रम की ओर उछाल दिया।
लेकिन दुर्भागयवश पराक्रम इतना दूर था कि लकड़ी का लट्ठा उसके हाथ में नहीं आ पा रहा था।
इतने में कुछ ग्रामीण वहाँ पहुँचे और पराक्रम को देखकर सब यही बोलने लगे – अब ये नहीं बच पाएगा, यहाँ से निकलना नामुमकिन है।
यहाँ तक कि अनुक्रम को भी ये अहसास हो रहा था कि अब पराक्रम नहीं बच सकता, तेज बहाव में बचना नामुनकिन है, यही सोचकर सबने हथियार डाल दिए और कोई बचाव को आगे नहीं आ रहा था। काफी समय बीत चुका था, पराक्रम अब दिखाई भी नही दे रहा था।
अभी सभी लोग किनारे पर बैठ कर पराक्रम का शोक मना रहे थे कि दूर से एक सन्यासी आते हुए दिखाई दिए,उनके साथ एक नौजवान भी था। थोड़ा पास आये तो पता चला वो नौजवान पराक्रम ही था।
अब तो सारे लोग खुश हो गए लेकिन हैरानी से वो सब लोग पराक्रम से पूछने लगे कि तुम तेज बहाव से बचे कैसे?
सन्यासी ने कहा कि आपके इस सवाल का जवाब मैं देता हूँ – ये बालक तेज बहाव से इसलिए बाहर निकल आया क्यूँकि इसे वहाँ कोई ये कहने वाला नहीं था कि “यहाँ से निकलना नामुनकिन है”
इसे कोई हताश-निराश करने वाला नहीं था, इसे कोई हतोत्साहित करने वाला नहीं था। इसके सामने केवल लकड़ी का लट्ठा था और मन में बचने की एक उम्मीद! बस इसी उम्मीद का दामन थाम कर ये बच निकला।
दोस्तों हमारी जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही होता है, जब दूसरे लोग किसी काम को असम्भव कहने लगते हैं तो हम भी अपने हथियार डाल देते हैं क्योंकि हम भी मान लेते हैं कि ये असम्भव है। हम अपनी क्षमता का आंकलन दूसरों के कहने से करते हैं।
आपके अंदर अपार क्षमताएँ हैं, किसी के कहने से खुद को कमजोर मत बनाइये। सोचिये पराक्रम से अगर बार बार कोई बोलता रहता कि यहाँ से निकलना नामुमकिन है, तुम नहीं निकल सकते, ये असम्भव है तो क्या वो कभी बाहर निकल पाता? कभी नहीं…….
उसने खुद पर विश्वास रखा, खुद पर भरोसा किया, बस इसी उम्मीद ने उसे बचाया।
    संदेश  ~
             उपरोक्त कहानी हमसे स्पष्ट शब्दों में कहती है कि आप स्वयं के आत्मविश्वास को  कभी भी कैसी भी दशा में न डिगने दें , फिर कोई ऐसी शक्ति नहीं जो आपको अपने लक्ष्य से दूर कर सके।

लेखिका – सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक कृति,सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *