नन्ही कली गुलाब की
बिन परवाह किए
कांटों की
फूल बन इठलाती है ,
तब प्रकृति उत्सव मनाती है ।
जब निर्मल जल निष्ठुर पत्खरों में भी,
बनाकर रास्ता ,
झरना बन सौंदर्य का ,
जादू बिखेरता है,
तब प्रकृति उत्सव मनाती है ।
बारिश की बूंदों को
अपनी बाहों में समेट
धरती जब सौन्धउठती है ,
तब प्रकृति उत्सव मनाती है ।
घनघोर बारिश में ,
जब बादल एक दूसरे को पकड़ने की चाह में ,
धमाचौकड़ी मचाते हैं ,
तब प्रकृति उत्सव मनाती है ।
ओस की बूंदे ,
जब पत्तियों पर बिखर मुस्कुराती हैं ,
तब प्रकृति उत्सव मनाती है ।
रंग बिरंगे फूलों को ,
आंचल में समेटकर
प्रति आकर्षण और फूलों को सुला देती है तब ।
प्रकृति उत्सव मनाती है
कल कल की आवाज सुना कर ,
धारा को और लंबी बनाती नदी
को देख प्रकृति उत्सव मनाती है ।
आम की बोर को देख
कूकती कोयल को सुन
चहचाहती चिड़ियों का
कलरव सुन
प्रकृति उत्सव मनाती है।
जया शर्मा (प्रियंवदा)