किसी से भेदभाव रखना कोई अच्छी बात नहीं।
दिल में हो स्थान सभी के प्रति आदर
राग नहीं।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी तो हैं ये इंसान।
सबके रंगों में एक ही खून ये बहता है ये इंसान।
लहू का रंग एक है सबके नीला पीला नहीं लाल।
बिना भेदभाव के रक्त चाहिए होता है यह लाल।
जिसे खून चाहिए होता वह जाति धर्म न देखा है।
मानवता के खातिर यारों रक्त बैंकों में
न देखा है।
देते हैं सब बिना भेदभाव के जानें यह
बचाने को।
लेते हैं सब बिना भेदभाव के जानें यह बचाने को।
अब समाज में वैसे भी देखो भेदभाव
नहीं कोई।
हर समाज में लोग होरहे शामिल भेद
नहीं कोई।
सामंतवादी शासन में ये भेदभाव रही
एक कुप्रथा।
समाजवाद व धर्म निरपेक्षता में कोई
नहीं कुप्रथा।
अबतो सब एक कुएं से पानी पीते हैं
साथ में खाते।
अगल बगल रहते हैं सब कहीं भी ये
आते हैं जाते।
कुछ जमीदारों को अबभी जमीदारी काही है दम्भ।
जमीदारी उन्मूलन हो गया जीते अब
भी उसी ढंग।
काम काज खेती बाड़ी मजदूरी करते
थे जो पहले।
वह भी मिलते नहींहैं अब आसानी से
जैसा पहले।
अब तो सवर्ण का कोई भी जोर नहीं न जमाना है।
अबतो केवल पिछड़ी जातियों का ही
ये जमाना है।
जाति पाति की गणित को देखो आई
राजनीति में।
सवर्ण वोट मांग रहे हैं बिना भेदभाव
राजनीति में।
ठाकुर साहब पैर छू रहे वोट मांग रहे
बुधई का वो।
पंडित जी भी पैर पड़ रहे वोट मांगते
सुखई का वो।
भेदभाव का गया जमाना सबकुछ है
अपने सामने।
छोटे लोग ये टक्कर देते बड़े बड़ों के
अपने सामने।
भेदभाव यह कभी नहीं थी अच्छी ये
कोई चीज।
अच्छा हुआ खत्म हो गई ये भेदभाव जैसी चीज।
रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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