(शेर)- कहो नहीं हमको वनवासी, हम तो आदिवासी है।
क्योंकि हम सदियों से, इस धरती के मूलनिवासी है।।
हम है प्रकृति के रक्षक, और हम सच्चे देशभक्त है।

कहते हैं हम गर्व से सिर ऊंचा कर, हम आदिवासी है।।

आदिकाल से हम, यहाँ के निवासी है।
इसीलिए तो हम, यहाँ के आदिवासी है।।
इस जमीं- जल- जंगल के, हम है रक्षक।
क्योंकि इस प्रकृति के, हम मूलनिवासी है।।
आदिकाल से हम————————।।

प्रकृति से जो मिले, खुशी से खा लेते हैं।
प्रकृति का महत्व, सबको हम बतलाते हैं।।
प्रकृति के उपासक हम, प्रकृति के साथी है।
क्योंकि इस प्रकृति के, हम मूलनिवासी है।।
आदिकाल से हम————————-।।

महलों के नहीं प्यासे हम, जमीं पे सो जाते हैं।
मुसीबतों और खतरों से, हम टकरा जाते हैं।।
साधा जीवन जीते हैं, हम नहीं अभिमानी है।
क्योंकि इस प्रकृति के, हम मूलनिवासी है।।
आदिकाल से हम——————————।।

बिरसा मुंडा के वंशज हम, सच्चे देशभक्त है।
राणा पुंजा- बूंदा मीणा के, हम सच्चे भक्त है।।
मानगढ़ हम लोगों की, देशभक्ति का साक्षी है।
क्योंकि इस प्रकृति के, हम मूलनिवासी है।।
आदिकाल से हम—————————-।।

शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

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Gurudeen Verma

By Gurudeen Verma

एक शिक्षक एवं साहित्यकार(तहसील एवं जिला- बारां, राजस्थान) पोस्टेड स्कूल- राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, नांदिया, तहसील- पिण्डवाड़ा, जिला- सिरोही(राजस्थान) 2900 से ज्यादा रचनायें

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