वह चांद में बैठी बूढ़ी अम्मा
एक दिन हंसकर मुझसे बोली,
सुन ओ भोली ,
रोज चांद, सूरज को तू टेके माथा
घर गृहस्थी, औलाद का मोह तेरा बढ़ता जाता।
तू मांगे भरे दिल से उनके लिए दुआएं ,
देती रहती सदा तू उन्हें शुभकामनाएं।
पर पगली तेरी जैसी न जाने कितनी सीमाएं
यहां चांद पर करती है इंतजार,
उनके मरने के बाद
कोई तो हो जो उन्हें मनाए ,
कोई तो हो जो उन्हें याद कर पाए।
पर यह कमबख्त ,खुदगर्ज ,रिश्ते नाते
सब बस मतलब को साथ निभाते,
अपने मतलब को पूछते
ना हो मतलब तो जीते जी ही भूल जाते,
हां जो खुद पर रखते स्वाभिमान ,,
देते हैं बस उन्हें ही लोग सम्मान।
हमारी सीख ,
मत मांग प्यार की भीख ,
कर तू पूजा ,जप ,तप ,नेम अचारा,
पर खुद से सबसे पहले इश्क कर मेरे यारा।
स्वरचित सीमा कौशल यमुना नगर हरियाण