नए नेताओं के अलग-अलग विचार (तृतीय भाग)
आगे भगत सिंह लिखते हैं- लेकिन बाद में मुंबई के एक भाषण में यह बात स्पष्ट रूप से हमारे सामने आ गई। पंडित जवाहर लाल नेहरू इस जनसभा की अध्यक्षता कर रहे थे और सुभाष चंद्र बोस ने भाषण दिया। वह एक बहुत भावुक बंगाली हैं। उन्होंने भाषण आरंभ किया कि हिंदुस्तान का दुनिया के नाम एक विशेष संदेश है। वह दुनिया को आध्यात्मिक शिक्षा देगा। खैर आगे वह दीवाने की तरह कहना आरंभ कर देते हैं – चांदनी रात में ताजमहल को देखो और जिस दिल की सूझ का परिणाम था ,उसकी महानता की कल्पना करो। सोचो एक बंगाली उपन्यासकार ने लिखा है कि हममें ,हमारे यह आंसू ही जमकर पत्थर बन गए हैं। वह भी वापस वेदों की ओर लौट चलने का आवाहन करते हैं। आपने अपने पूना वाले भाषण में ‘ ‘राष्ट्रवादिता ‘ के संबंध में कहा है कि अंतरराष्ट्रीयतावादी ,राष्ट्रीयतावाद को एक संकीर्ण दायरे वाली विचारधारा बताते हैं ,लेकिन यह भूल है। हिंदुस्तानी राष्ट्रीयता का विचार ऐसा नहीं है। वह न संकीर्ण है,ना निजी स्वार्थ से प्रेरित है और न उत्पीड़नकारी है ,क्योंकि इसकी जड़ या मूल तो ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम् ,है अर्थात् सच ,कल्याणकारी और सुंदर।
यह भी वही छायावाद है, कोरी भावुकता है। साथ ही उन्हें भी अपने पुरातन युग पर बहुत विश्वास है। वह प्रत्येक बात में अपने पुरातन युग की महानता देखते हैं। पंचायती राज का ढंग उनके विचार में कोई नया नहीं। ‘पंचायती राज और जनता के राजश्वे कहते हैं कि हिंदुस्तान में बहुत पुराना है। वे तो यहां तक कहते हैं कि साम्यवाद भी हिंदुस्तान के लिए नई चीज नहीं है। खैर ,उन्होंने सबसे ज्यादा उस दिन के भाषण में जोर किस बात पर दिया था कि हिंदुस्तान का दुनिया के लिए एक विशेष संदेश है । पंडित जवाहरलाल आदि के विचार इसके बिल्कुल विपरीत हैं। वे कहते हैं –
“जिस देश में जाओ वही समझता है कि उसका दुनिया के लिए एक विशेष संदेश है। इंग्लैंड दुनिया को संस्कृति सिखाने का ठेकेदार बनता है। मैं तो कोई विशेष बात अपने देश के पास नहीं देखता। सुभाष बाबू को उन बातों पर बहुत यकीन है।” जवाहरलाल कहते हैं – ” प्रत्येक नौजवान को विद्रोह करना चाहिए। राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक क्षेत्र में भी । मुझे ऐसे व्यक्ति की कोई आवश्यकता नहीं जो आकर कहे कि फलां बात कुरान में लिखी हुई है । कोई बात जो अपनी समझदारी की परख में सही साबित ना हो उसे चाहे वेद और कुरान में कितना ही अच्छा क्यों ना कहा गया हो ,नहीं माननी चाहिए ।”
यह एक युगांतरकारी के विचार है और सुभाष के एक राज – परिवर्तनकारी के विचार हैं। एक के विचार में हमारी पुरानी चीजें बहुत अच्छी है और दूसरे के विचार में उनके विरुद्ध विद्रोह कर दिया जाना चाहिए । एक को भावुक कहा जाता है और एक को युगांतरकारी और विद्रोही। पंडित जी एक स्थान पर कहते हैं – कि जो अब भी कुरान के जमाने के अर्थात 1300 वर्ष पीछे के अरब की स्थितियां पैदा करना चाहते हैं ,जो पीछे वेदों के जमाने की ओर देख रहे हैं उनसे मेरा यह कहना है कि यह तो सोचा भी नहीं जा सकता है कि वह युग वापस लौट आएगा ,वास्तविक दुनिया पीछे नहीं लौट सकती, काल्पनिक दुनिया को चाहे कुछ दिन यही स्थिर रखो। और इसलिए वे विद्रोह की आवश्यकता महसूस करते हैं।
क्रमशः
गौरी तिवारी
भागलपुर, बिहार