नौजवान भारत सभा लाहौर का घोषणा पत्र( द्वितीय भाग) –
आगे भगत सिंह कहते हैं क्या हमें यह महसूस कराने के लिए  कि हम गुलाम है और हमें आजाद होना चाहिए, किसी दैवी ज्ञान या आकाशवाणी की आवश्यकता है? क्या हम अवसर कि प्रतीक्षा करेंगे या किसी अज्ञात की प्रतीक्षा करेंगे जो हमें जो महसुस कराए की हम दलित लोग हैं? क्या हम इन्तजार में बैठे रहेंगे की कोई दैवी सहायता आ जाए या फिर कोई जादू की हम आजाद हो जाए? क्या हम आजादी के बुनियादी सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं? “जिन्हें आजाद होना है उन्हे स्वयं चोट करनी पड़ेगी”। नौजवानों जागो , उठो ,हम काफी देर सो चुके हैं! 
हमने केवल नौजवानों से ही अपील की है क्योंकि नौजवान बहादुर होते हैं, उदार एवं भावुक होते हैं, क्योंकि नौजवान भीषण अमानवीय यंत्रणाओं को मुस्कुराते हुए बर्दाश्त कर लेते हैं और बगैर किसी प्रकार की हिचकिचाहट के मौत का सामना करते हैं, क्योंकि मानव प्रगति का संपूर्ण इतिहास नौजवान आदमियों तथा औरतों के खून से लिखा है; क्योंकि सुधार हमेशा नौजवानों की शक्ति, साहस ,आत्मबलिदान और भावात्मक विश्वास के बल पर ही प्राप्त हुए हैं- 
ऐसे नौजवान जो भय से परिचित नहीं है और जो सोचने के बजाय दिल से कहीं अधिक महसूस करते हैं।
क्या यह जापान के नौजवान नहीं थे जिन्होंने पोर्ट आथर्ड तक पहुंचने के लिए सुखा रास्ता बनाने के उद्देश्य से अपने आप को सैकड़ों की तादाद में खाईयों में झोंक दिया था? और जापान आज विश्व के सबसे आगे बढ़े हुए देशों में से एक है। क्या यह पोलैंड के नौजवान नहीं थे जिन्होंने पिछली पूरी शताब्दी भर बार-बार संघर्ष कियें, पराजित हुए और फिर बहादुरी के साथ लड़े? और आज एक आजाद पोलैंड हमारे सामने है। इटली को ऑस्ट्रेलिया के जुए से किसने आजाद किया था? तरुण इटली ने! 
युवा तुर्कों ने जो कमाल दिखलाया,  क्या आप इसे जानते हैं ?चीन के नौजवान जो कर रहे हैं, उसे क्या आप  रोज समाचार पत्रों में नहीं पड़ते हैं ?क्या यह रूस के नौजवान नहीं थे जिन्होंने रूसीयों के उद्धार के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी ?पिछली शताब्दी भर लगातार केवल समाजवादी पर्चे बांटने के अपराध में सैकड़ों हजारों की संख्या में उन्हें साइबेरिया में जलावतन किया गया था, दोस्तोंयेवस्की जैसे  लोगों को सिर्फ इसलिए जेल में बंद किया गया फिर की वे समाजवादी डिबेटिंग सोसायटी के सदस्य थे । बार बार उन्होंने दमन के तूफान का सामना किया, लेकिन उन्होंने साहस नहीं खोया। वे संघर्षरत नौजवान थे। और सब जगह नौजवान ही निडर होकर बगैर किसी हिचकिचाहट के और बगैर उम्मीदें 
बाँधे लड़ सकते हैं। और आज हम महान रूस में विश्व के मुक्तिदाता के दर्शन कर सकते हैं।
जबकि हम भारतवासी हम क्या कर रहे हैं? पीपल की एक डाल टूटते ही हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं चोटिल हो उठती है !बूतों को तोड़ने वाले मुसलमानों के ताजिए नामक कागज के बुत का कोना फटते ही अल्लाह का प्रकोप जाग उठता है और फिर वह ‘नापाक’ हिंदुओं के खून से कम किसी वस्तु से संतुष्ट नहीं होता !मनुष्य को पशुओं से अधिक महत्व दिया जाना चाहिए, लेकिन यहां भारत में लोग पवित्र पशुओं के नाम पर एक दूसरे का सिर फोड़ते हैं। 
हमारे बीच और भी बहुत से लोग हैं जो अपने आलसीपन को अंतरराष्ट्रीय- तावाद की निरर्थक बकवास के पीछे छुपाते हैं। जब उनसे अपने देश की सेवा करने को कहा जाता है तो वह कहते हैं “श्रीमान जी, हम लोग जगतबंधु हैं और सार्वभौमिक भाईचारे में विश्वास करते हैं। हमें अंग्रेजों से नहीं झगड़ना चाहिए। वे हमारे भाई हैं”। क्या खूब विचार है, क्या खूबसूरत बुजदिली को और आत्मत्याग की भावना के अभाव को छिपाने के लिए वह आलसी समस्या पर पर्दा डाल कर नकली समस्याएं खड़ी कर रहे हैं। यह आरामतलब राजनीतिज्ञ हड्डियों के उन मुट्ठी भर टुकड़ों पर आंखें गड़ाए बैठे हैं जिन्हें ,जैसा उनका विश्वास है, सशक्त शासकगण उनके सामने फेंक सकते हैं। यह बहुत ही अपमानजनक बात है। जो लोग आजादी की लड़ाई में बढ़ कर आते हैं वे बैठकर यह नहीं कर सकते कि इतनी त्याग के बाद उनकी कामयाबी होगी और इसमें उन्हें इतना हिस्सा सुनिश्चित रहना चाहिए। इस प्रकार के लोग कभी भी किसी प्रकार का त्याग नहीं करते। हमें ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो बगैर उम्मीदों के निर्भय होकर और बगैर किसी प्रकार की हिचकिचाहट के लड़ने को तैयार हो और बगैर सम्मान के, बगैर आंसू बहाने वाले के और बगैर प्रशस्तिगान  के मृत्यु का आलिंगन करने को तैयार हो। इस प्रकार के उत्साह के अभाव में हम दो मोर्चा वाले उस महान युद्ध को नहीं लड़ सकेंगे, जिससे हमें लड़ना है यह युद्ध दो मोर्चा वाला है क्योंकि हमें एक तरफ अंदरूनी शत्रु से लड़ना है और दूसरी तरफ बाहरी दुश्मन से। हमारी असली लड़ाई स्वयं अपनी अयोग्यताओं के खिलाफ है। हमारा शत्रु और कुछ हमारे अपने लोग निजी स्वार्थ के लिए उनका फायदा उठाते हैं। 
क्रमशः
 गौरी तिवारी 
भागलपुर बिहार
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