धारावाहिक भाग ३३
(नए नेताओं के अलग-अलग विचार – अंतिम भाग)
आगे भगत सिंह कहते हैं – सुभाष बाबू पूर्ण स्वराज के समर्थन में हैं क्योंकि वह कहते हैं कि अंग्रेज पश्चिम के वासी हैं , और हम पूर्व के वासी हैं। पंडित जी कहते हैं, हमें अपना राज कायम करके सारी सामाजिक व्यवस्था बदलनी चाहिए। उसके लिए पूरी -पूरी स्वतंत्रता प्राप्त करने की आवश्यकता है। सुभाष बाबू मजदूरों से सहानुभूति रखते हैं और उनकी स्थिति सुधारना चाहते हैं । पंडित जी एक क्रांति करके सारी व्यवस्था ही बदल देना चाहते हैं। सुभाष दिल से भावुक हैं और वह नौजवानों को बहुत कुछ दे रहे हैं पर मात्र दिल के तसल्ली के लिए, दूसरा युगांतरकारी हैं जो कि दिल के साथ-साथ दिमाग को भी बहुत कुछ दे रहा है । हमारा समाजवादी सिद्धांतों के अनुसार पूर्ण स्वराज होना चाहिए, जो कि युगांतरकारी तरीकों के बिना प्राप्त नहीं हो सकता। केवल सुधार और मौजूदा सरकार की मशीनरी की धीमी -धीमी की गई मरम्मत जनता के लिए वास्तविक स्वराज नहीं ला सकती।
यह उनके विचारों का ठीक-ठाक अस्क है। सुभाष बाबू राष्ट्रीय राजनीति की ओर उतने समय तक ही ध्यान देना आवश्यक समझते हैं जितने समय तक दुनिया की राजनीति में हिंदुस्तान की रक्षा और विकास का सवाल है। परंतु पंडित जी राष्ट्रीयता के संकीर्ण दायरों से निकलकर खुले मैदान में आ गए हैं।
अब सवाल यह है कि हमारे सामने दोनों विचार आ गए हैं। हमें किस ओर झुकना चाहिए। एक पंजाबी समाचार पत्र ने सुभाष की तारीफ के पुल बांधकर पंडित जी आदि के बारे में कहा था कि ऐसे विद्रोही पत्थरों से सिर मार -मारकर मर जाते हैं । ध्यान रखना चाहिए कि पंजाब पहले ही बहुत भावुक प्रांत है। लोग जल्द ही जोश में आ जाते हैं और जल्दी झाग की तरह बैठ जाते हैं। सुभाष आज शायद दिल को कुछ भोजन देने के अलावा कोई दूसरा मानसिक खुराक नहीं दे रहे हैं। अब आवश्यकता इस बात की है कि पंजाब के नौजवानों को इन युगांतरकारी विचारों को खूब सोच विचार कर पक्का कर लेना चाहिए । इस समय पंजाब को मानसिक भोजन की सख्त जरूरत है और यह पंडित जवाहरलाल नेहरु से ही मिल सकता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि उनके अंधे पैरोकार बन जाना चाहिए । लेकिन जहां तक विचारों का संबंध है वहां तक इस समय पंजाबी नौजवानों को उनके साथ लगना चाहिए, ताकि वह इंकलाब के वास्तविक अर्थ के बारे में जान सकें। सोच विचार के साथ नौजवान अपने विचारों को स्थिर करे ताकि निराशा, मायूसी और पराजय के समय में भी भटकाव के शिकार न हों और अकेले खड़े होकर दुनिया से मुकाबला में डटे रह सकें। इसी तरह जनता इंकलाब के ध्येय को पूरा कर सकती है।
क्रमशः
गौरी तिवारी ,भागलपुर बिहार