बम कांड पर सेशन कोर्ट में बयान (तृतीय भाग)
हमारा अभिप्राय-
अभी तक हमें इस घटना के मूल उद्देश्य पर ही प्रकाश डाला है अब हम अपना अभिप्राय स्पष्ट कर देना चाहते हैं। यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि इस घटना के सिलसिले में मामूली चोटें खाने वाले व्यक्तियों अथवा असेंबली के किसी अन्य व्यक्ति के प्रति हमारे दिलों में कोई वैयक्तिक विद्वेष की भावना नहीं थी। इसके विपरीत हम एक बार फिर स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम मानव जीवन को अत्यंत पवित्र मानते हैं और किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुंचाने के बजाय हम मानव जाति की सेवा में हंसते-हंसते अपने प्राण विसर्जित कर देंगे। हम साम्राज्यवाद की सेना के भाड़े के सैनिकों जैसे नहीं हैं जिनका काम ही हत्या होता है। हम मानव जीवन का आदर करते हैं और बराबर उसकी रक्षा का प्रयत्न करते हैं। इसके बाद भी हम स्वीकार करते हैं कि हमने जानबूझकर असेंबली भवन में बम फेकें।
घटनाएं स्वयं हमारे अभिप्राय पर प्रकाश डालती है। और हमारे इरादों की परख हमारे काम के परिणाम के आधार पर होनी चाहिए ना कि अटकल एवं मनगढ़ंत परिस्थितियों के आधार पर। सरकारी विशेषज्ञ की गवाही के विरुद्ध हमें यह कहना है कि असेंबली भवन में फेंके गए बमों से वहां की एक खाली बेंच को ही कुछ नुकसान पहुंचा और लगभग आधे दर्जन लोगों को मामूली सी खरोच भर आया।
सरकारी वैज्ञानिकों ने कहा है कि बम बड़े जोरदार थे और उन से अधिक नुकसान नहीं हुआ ! इसे एक अनहोनी घटना ही कहना चाहिए। लेकिन हमारे विचार से उन्हें वैज्ञानिक ढंग से बनाया ही ऐसा गया था। पहली बात दोनों बम बेंचों तथा डेसकों के बीच की खाली जगह में गिरे थे! दूसरे उनके फूटने की जगह से 2 फीट पर बैठे हुए लोगों को भी , जिनमें श्री पी .आर .राव , श्री शंकर राव तथा सर जार्ज शुसटर के नाम उल्लेखनीय हैं, या तो बिल्कुल ही छोटे नहीं आए या मात्र मामूली आई अगर उन बमों में जोरदार पोटेशियम क्लोरेट और प्रेषित भरा होता जैसा कि सरकारी विशेषज्ञ ने कहा है तो इन बमों ने उस लकड़ी के घेरे को तोड़कर कुछ गज की दूरी पर खड़े, लोगों तक उड़ा दिया होता । यदि उनमें कोई और भी शक्तिशाली विस्फोटक भरा होता तो निश्चय ही वह असेंबली के अधिकांश सदस्य को उड़ा देने में समर्थ होते। यदि हम चाहते तो उन्हें सरकारी कक्ष में फेंक सकते थे जो विशिष्ट व्यक्तियों से खचाखच भरा था। या फिर उस सर जॉन साइमन को अपना निशाना बना सकते थे जिनके अभागे कमीशन ने प्रत्येक विचार से व्यक्ति के दिल में उसकी ओर से गहरी नफरत पैदा कर दी थी और जो उस समय असेंबली के अध्यक्ष दीर्घा में बैठा था। लेकिन इस तरह का हमारा कोई इरादा नहीं था और उन दोनों ने उतना ही काम किया जितने के लिए उन्हें तैयार किया गया था यदि उसे कोई अनहोनी घटना हो तो यह कि वह निशाने पर अर्थात निरापद स्थान पर गिरे
एक ऐतिहासिक सबक-
इसके बाद हमने इस कार्य का दंड भोगने के लिए अपने आप को जानबूझकर पुलिस के हाथों समर्पित कर दिया। हम समाजवादी सोच को कोई अब बता देना चाहते थे कि मुट्ठी भर आदमियों को मारकर किसी आदर्श को समाप्त नहीं किया जा सकता और ना ही दो नग्न व्यक्तियों को कुचल कर राष्ट्र को दबाया जा सकता है। हम इतिहास के इस सबक पर जोर देना चाहते थे कि परिचय चिन्ह तथा भारतीय फ्रांस के क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलने में समर्थ नहीं हुए थे फांसी के फंदे और साइबेरिया के खाने रूसी क्रांति की आग को बुझा नहीं पाई थी। तो फिर क्या अध्यादेश और जब सेफ्टी बिलस भारत में आजादी की लौ को बुझा सकेंगे षड्यंत्र का पता लगाकर या गड़े हुए षडयंत्रों द्वारा नौजवानों को सजा देकर, यह एक महान आदर्श के स्वप्न से प्रेरित नवयुग को को जेलों में ठूंस कर क्या क्रांति का अभियान रोका जा सकता है? हां सामयिक चेतावनी से बशर्ते कि उसकी उपेक्षा ना की जाए लोगों की जानें बचाई जा सकती है और व्यर्थ की मुसीबतों से उनकी रक्षा की जा सकती है। आगाही देने का यह भार अपने ऊपर ले कर हमने अपना कर्तव्य पूरा किया है।
क्रमशः
गौरी तिवारी
भागलपुर बिहार