बम कांड पर सेशन कोर्ट में बयान (अंतिम भाग)
क्या है क्रांति?
(भगत सिंह से नीचे की अदालत में पूछा गया था कि क्रांति से उन लोगों का क्या मतलब है इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा था कि) क्रांति के लिए खूनी लड़ाइयां अनिवार्य नहीं है और ना ही उसमें व्यक्तिगत प्रति हिंसा के लिए कोई स्थान है। वह बम और पिस्तौल का संप्रदाय नहीं है। क्रांति से हमारा अभिप्राय है अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज व्यवस्था में आमूल परिवर्तन।
समाज का प्रमुख अंग होते हुए भी आज मजदूरों को उनके प्राथमिक अधिकार से वंचित रखा जा रहा है। और उनकी गाढ़ी कमाई का सारा धन शोषक पूंजीपति हड़प जाते हैं। दूसरे के अन्नदाता किसान आज अपने परिवार सहित दाने-दाने के लिए मोहताज है दुनिया भर के बाजारों को कपड़ा मुहैया करने वाले बुनकर अपने तथा अपने बच्चों के तन ढकने भर को भी कपड़ा नहीं पा रहा है। सुंदर महलों का निर्माण करने वाला राजगीर लोहार तथा बढ़ई स्वयं गंदे वड में रहकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर जाते हैं। इसके विपरीत समाज के जोंक शोषक पूंजीपति जरा सी बातों के लिए लाखों का वारा न्यारा कर देते हैं।
यह भयानक आसमानता और जबरदस्ती लाधा गया भेदभाव दुनिया को एक बहुत बड़ी उथल-पुथल की ओर लिए जा रहा है। यह स्थिति अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकती। स्पष्ट है कि आज का दैनिक समाज एक भयानक ज्वालामुखी के मुख पर बैठकर रंगरेलियां मना रहा है और शोषकों के मासूम बच्चे तथा करोड़ों शोषित लोग एक भयानक गड्ढे की कगार पर चल रहे हैं।
आमूल परिवर्तन की आवश्यकता-
सभ्यता का यह प्रसाद यदि समय रहते संभालना गया तो शीघ्र ही चरमराकर बैठ जाएगा। देश को एक आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है और जो लोग इस बात को महसूस करते हैं उनका कर्तव्य है कि समाजवादी सिद्धांतों पर समाज का पूर्ण निर्माण करें। जब तक यह नहीं किया जाता और मनुष्य द्वारा मनुष्य का तथा एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण जिसे साम्राज्यवाद कहते हैं समाप्त नहीं कर दिया जाता तब तक मानवता को उसके क्लेश से छुटकारा मिलना असंभव है और तब तक युद्धों को समाप्त कर विश्व शांति के युग का प्रभाव करने की सारी बातें महज ढोंग के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। क्रांति से हमारा मतलब अंततोगत्वा एक ऐसे समाज व्यवस्था की स्थापना से है जो इस प्रकार के संकटों से भरी हुई और जिसमें सर्वहारा वर्ग का अधिपत्य सर्वमान्य होगा। और जिसके फलस्वरूप स्थापित होने वाला विश्व संघ पीड़ित मानवता को पूंजीवाद के बंधनों से और समाजवादी युद्ध की तबाही से छुटकारा दिलाने में समर्थ हो सकेगा।
सामयिक चेतावनी-
यह है हमारा आदर्श और इसी आदर्श से प्रेरणा लेकर हमने एक सही तथा पूरे जोर चेतावनी दी है। लेकिन अगर हमारे इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया गया और वर्तमान शासन व्यवस्था उठते हुए जनशक्ति के मार्ग में रोड़े अटका से बाज न आई तो क्रांति के इस आदर्श की पूर्ति के लिए एक भयंकर युद्ध करना अनिवार्य है। सभी बाधाओं को रौंदकर आगे बढ़ते हुए उस युद्ध के फल स्वरुप सर्वहारा वर्ग के अधिनायक तंत्र की स्थापना होगी। यह अधिनायक तंत्र क्रांति के आदेशों के प्रति के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा। क्रांति मानव जाति का जन्मजात अधिकार है जिसका अपहरण नहीं किया जा सकता। स्वतंत्रता प्रत्येक मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है श्रमिक वर्ग ही समाज का वास्तविक पोषक है जनता के सर्वोपरि सत्ता की स्थापना ही श्रमिक वर्ग का अंतिम लक्ष्य है। इन आदर्शों के लिए और इस विश्वास के लिए हमें जो भी दंड दिया जाएगा हम उसका शहर स्वागत करेंगे । क्रांति की इस पूजा बेदी पर हम अपना यौवन नैवे के रूप में लाए हैं क्योंकि ऐसे महान आदर्श के लिए बड़े से बड़ा त्याग भी कम है। हम संतुष्ट हैं और क्रांति के आगमन के उत्साह पूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हैं।
(६ जून, १९२९)
इंकलाब जिंदाबाद
क्रमशः
गौरी तिवारी
भागलपुर बिहार